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आत्मा
ही है शरण
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हैं कि हमें कभी भी पापबंध न हो तो हमें सदा ही पंचपरमेष्ठी का स्मरण रखना चाहिए । यही सद्विवेक है, सच्ची समझ है ।
जिस कार्य का जितना फल है, उससे अधिक मान लेने से तो कुछ कार्य सिद्ध होनेवाला नहीं है । ___ णमोकार महामंत्र में कुछ मांगा नहीं जाता है, तथापि उसके स्मरण से सभी पापभावों से बच जाते हैं । यह सब पंचपरमेष्ठी के स्मरण का ही प्रताप है । आचार्य कुन्दकुन्द की उक्त गाथा में भी बिना किसी मांग के पंचपरमेष्ठी का स्मरण किया गया है । इसलिए मैं कहता हूँ कि यह गाथा आचार्य कुंदकुंद का णमोकार महामंत्र है । ___ यद्यपि णमोकार महामंत्र में कुछ मांगा नहीं गया है, पर उसके बाद आने वाली पक्तियों में अरहंतादिक की शरण में जाने की बात अवश्य कही गई है । कहा गया है :
"चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहूसरण पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्त धम्म सरणं पव्वज्जामि।"
उक्त पक्तियों में अरिहंत, सिद्ध, साधु और केवलीभगवान द्वारा कहे गये धर्म की शरण में जाने की बात कही गई है । शरण में जाने की बात के माध्यम से शरण की मांग तो कर ही ली है, पर आचार्य कुंदकुंद ने तो निजभगवान आत्मा की शरण में जाने की ही बात की है । "तम्हा आदा हु मे सरणम्" कहकर वे निज आत्मा की शरण में जाने की ही बात करते हैं । यदि पंचपरमेष्ठी से कुछ मांग न करने के कारण ही णमोकार महामंत्र महान है तो फिर आचार्य कुंदकुंद की उक्त गाथा निश्चित रूप से महान है।
इस गाथा में वे आत्मा की शरण में जाने की बात को सयुक्ति सिद्ध करते हैं । इस बात की चर्चा करने के पूर्व में णमोकार मंत्र के बाद आने