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धूम क्रमबद्धपर्याय की
महिलायें निकलती थीं । बालक की सुरक्षा के लिए एक पुलिसवाले को भी साथ में खड़ा कर दिया और बालक से कहा - ___ "यहाँ से निकलने वाली प्रत्येक महिला को ध्यान से देखो और अपनी माँ को खोजो ।" ___ इससे एक ही बात फलित होती है कि बालक को अपनी माँ स्वयं ही खोजनी होगी, किसी का कोई विशेष सहयोग मिलने वाला नहीं है; पुलिसवालों का भी नहीं । ___इसीप्रकार प्रत्येक आत्मार्थी को अपने आत्मा की खोज स्वयं ही करनी होगी, किसी दूसरे के भरोसे कुछ होने वाला नहीं है, गुरु के भरोसे रहने पर भी आत्मा मिलने वाला नहीं है । 'अपनी मदद आप करो' - यही महासिद्धान्त है । किसी भी महिला के वहाँ से निकलने पर पुलिसवाला पूछता - "क्या यही तेरी माँ है ?" बालक उत्तर देता - "नहीं ।" ऐसा दो-चार वार होने पर पुलिसवाला चिढ़चिढ़ाने लगा और बोला - "क्या नहीं-नहीं करता है, जरा अच्छी तरह देख ।"
क्या माँ को पहिचानने के लिए भी अच्छी तरह देखना होता है, वह तो पहली दृष्टि में ही पहिचान ली जाती है, पर पुलिसवाले को कौन समझाये ? ___ पुलिसवाले की झल्लाहट एवं डाट-डपट से बालक, जो माँ नहीं है, उसे माँ तो कह नहीं सकता है; यदि डर के मारे कह भी दे, तो भी उसे माँ मिल तो नहीं सकती; क्योंकि उस माँ को भी तो स्वीकार करना चाहिए कि यह वालक मेरा है । यदि कारणवश माँ भी झूठ-मूठ कह दे कि हाँ यह बालक मेरा ही है, पर उससे वह बालक उसका हो तो नहीं जायेगा।