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________________ आत्मा ही है शरण 156 मैं किसी की अपेक्षा भले ही मोटा-पतला या गोरा-काला हो सकता हूँ, पर निरपेक्षपने तो जैसा हूँ, वैसा ही हूँ ।। ___ उसने अपनी माँ की तुलना किसी दूसरे से की ही न थी । अतः वह कैसे बताये कि उसकी माँ कैसी है ? उसके निरुत्तर रहने पर पुलिसवाले कहते हैं कि यह तो अपनी माँ को पहिचानता ही नहीं है, पर क्या यह वात सच है ? क्या वह बालक अपनी माँ को पहिचानता नहीं है ? पहिचानना अलग वात है और पहिचान को भाषा देना अलग । हो सकता है कि वह अपने भावों को व्यक्त नहीं कर सकता हो, पर पहिचानता ही न हो - यह बात नहीं है; क्योकि यदि उसकी माँ उसके सामने आ जावे तो वह एक क्षण में पहिचान लेगा । उसकी माँ का एक बीमा ऐजेन्ट ने कुछ वर्ष पूर्व एक वीमा करवाया था । अतः उसकी डायरी में सब-कुछ नोट है कि उसकी लम्बाई कितनी है, वजन कितना है, कमर कितनी है और सीना कितना है । अतः वह यह सब-कुछ बता सकता है, पर उसके सामने वह माँ आ जाये तो पहिचान न पावेगा । यदि पूछा जाय तो डायरी निकाल कर देखेगा और फीता निकाल कर नापने की कोशिश करेगा; पर सब बेकार है; क्योकि जब उसने नाप लिया था, तब सीना ३६ इंच था और कमर ३२ इंच, पर आज सीना ३२ इंच रह गया होगा और कमर ३६ इंच हो गई होगी। इसीप्रकार शास्त्रों में पढ़कर आत्मा की नाप-जोख करना अलग बात है और आत्मा का अनुभव करके पहिचानना, उसमें अपनापन स्थापित करना अलग बात है । जो भी हो, जब बालक कुछ भी न बता सका तो पुलिसवालों ने बालक को एक ऐसे स्थान पर खड़ा कर दिया, जहाँ से मेले में आने वाली सभी
SR No.009440
Book TitleAatma hi hai Sharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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