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धूम क्रमबद्धपर्याय की
गये। दोनों ही दिन शुद्धात्मशतक के पाठ के उपरान्त एक-एक घण्टे के प्रवचन तथा एक-एक घण्टे की चर्चा रखी गई । प्रवचन समयसार की १४४वीं गाथा पर चले, क्योंकि लोगों की भावना ऐसी ही थी ।
यहाँ प्रवचनों का लाभ लेने के लिए तुसान से १५० मील चलकर रमेशभाई खण्डार सपरिवार आये थे । उनके विशेष अनुरोध पर डॉ. दिलीप वोवरा के घर अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में रात को एक बजे तक क्रमबद्धपर्याय पर चर्चा चलती रही । इसके पूर्व प्रातः महेन्द्रभाई एवं संध्याबेन के घर पर एवं दोपहर को किशोरभाई एवं जयश्री वैन पारेख के घर पर चर्चा रखी गई थी, जिसमें अधिकांश महिलाएँ ही उपस्थित थीं । उन्होंने अनेक प्रश्न किए, पर अधिकांश प्रश्न क्रमबद्धपर्याय सम्बन्धी ही थे । सभी के समुचित समाधान पाकर सबको प्रसन्नता हुई ।
फिनिक्स से चलकर हम २४ जुलाई, १९८९ ई. शनिवार को लासएंजिल्स पहुँचे, जहाँ नवनिर्मित जैनमन्दिर के विशाल हाल में शाम को ७ वजे प्रवचन आयोजित था । प्रवचन सुनने आनेवालों के लिए सामूहिक भोजन की व्यवस्था भी की गई थी । लगभग पाँच सौ से अधिक लोगों की उपस्थिति में 'सम्यग्दर्शन' विषय पर हुए प्रवचन ने सभी लोगों को बहुत प्रभावित किया ।
सभी के अनुरोध पर तत्काल घोषणा की गई कि इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए कल रविवार को प्रातः १० से १२ बजे तक एवं सायं ७.३० से ९.३० तक इसी हाल में प्रवचन व चर्चा होगी । अतः दूसरे दिन भी लोगों ने भरपूर लाभ लिया । इस हाल में सोमवार और मंगलवार की शाम को भी ८ से १० बजे तक कार्यक्रम रखे गये थे । इसप्रकार चार दिन में पाँच घण्टे के पाँच प्रवचन एवं पाँच घण्टे ही तत्त्वचर्चा के कार्यक्रम हुए; इसकारण गहरी तत्त्वचर्चा के भी अवसर आये । सबकुछ मिलाकर सभी कार्यक्रम बहुत ही सफल रहे ।
लासएंजिल्स से रोचेस्टर गये, जहाँ प्रथम दिन २८ जून, १९८९ ई. को एक भाई के घर पर व्याख्यान रखा गया था, दूसरे दिन इण्डियन कम्यूनिटी