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आत्मा ही है शरण
अतिरिक्त न्यूयार्क के डॉ. धीरूभाई भी आये थे । एलनटाउन से ४ घण्टे की ड्राइव करके कुलीनभाई आये थे । वे गहरी आध्यात्मिक रुचि के मुमुक्षु भाई हैं ।
शिविर के आरंभ में तीन प्रवचन सम्यग्दर्शन के स्वरूप एवं प्राप्ति के उपाय पर हुए । उसके बाद समयसार की १४४वीं गाथा पर चार प्रवचन हुए इसके बाद चौदह गुणस्थान, चार अभाव, सात तत्त्व और सात तत्त्वों संबंधी भूलों पर प्रवचन चले ।
४५-४५ मिनट के दो प्रवचन प्रातः एवं दो प्रवचन दोपहर को चलते थे । विषय से सम्वन्धित प्रश्नोत्तर भी प्रत्येक प्रवचन के बाद चलते थे । रात को एक घण्टे की चर्चा विविध विषयों पर चलती थी । इसप्रकार प्रतिदिन लगभग ५ घण्टे का कार्यक्रम प्रवचन व चर्चा का चलता था । इसके अतिरिक्त जिनेन्द्रवंदना, वारहभावना, कुन्दकुन्दशतक एवं शुद्धात्मशतक का पाठ भी चलता था ।
यहाँ (वाशिंगटन में) भी मन्दिर के लिए चार एकड़ जमीन खरीद ली गई है, जिसमें तीन हजार फुट का बना हुआ एरिया भी है । उसमें आवश्यक परिवर्तन एवं परिवर्द्धन का कार्य चालू था । भगवान बिराजमान करने का कार्यक्रम १९ अगस्त, १९८९ ई. निश्चित किया गया था, जो यथासमय सम्पन्न हो गया होगा ।
उसमें तीन मूर्तियाँ रखने का निश्चय हो गया था, जो जयपुर में तैयार हो रही थीं । उनमें बीच की मूर्ति ३३ इंच की थी एवं अगल-बगल की मूर्तियाँ २७ इंच की । एक मूर्ति पूर्णतः दिगम्बर रहेगी, शेष दो मूर्तियों में चक्षु आदि लगाए जाने वाले थे ।
वाशिंगटन से चलकर २१ जून की रात को फिनिक्स पहुँचे, जहाँ एक दिन किशोरभाई पारेख एवं एक दिन डॉ. दिलीप वोवरा के घर पर ठहरे। दोनों दिन दो विभिन्न सुदूरवर्ती स्थानों पर सार्वजनिक हालों में प्रवचन रखे