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आत्मा ही है शरण
नहीं रहा । उसके बाद एक-एक घण्टे के सात प्रवचन क्रमबद्धपर्याय पर हुए, जिन्होंने वहाँ धूम मचा दी । प्रवचनों के अतिरिक्त प्रतिदिन लगभग ४-४ घण्टे तक क्रमबद्धपर्याय पर चर्चा भी चलती रही । प्रातः और सायं तो प्रतिदिन दो-दो घण्टे प्रवचन और चर्चा होती ही थी, दोपहर में भी लोग अपना काम छोड़कर चर्चा के लिए आते रहे ।
कहीं से कोई विरोध का स्वर दिखाई नहीं दिया, सर्वत्र सरल जिज्ञासा के ही दर्शन हुए ।
क्रमबद्धपर्याय की चर्चा ने सभी को आन्दोलित कर दिया । लोगों में अभूतपूर्व जागृति आई तीव्र जिज्ञासा जागृत हुई, नित्य स्वाध्याय करने की प्रेरणा मिली ।
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इसीप्रकार टोरंटो में होने वाले जैना (जैन एसोसिएशन इन नार्थ अमेरिका ) के सम्मेलन में जब पहलीबार ही हमें बन्धुत्रिपुटी मिले और सुशील मुनिजी ने हमारा उनसे परिचय कराया तो वे छूटते ही बोले
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"हम तो इन्हें क्रमबद्धपर्याय के नाम से ही जानते हैं ।"
मेरी ओर मुड़ते हुए उन्होंने कहा
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"हमने आपकी क्रमबद्धपर्याय पढ़ी है, बहुत ही अच्छी पुस्तक है । आपका नाम तो बहुत सुना था, पुस्तकें भी पढ़ी हैं, वीडिओ एवं ओडिओ कैसेट भी देखे हैं, सुने हैं; पर साक्षात् मिलना अब हो रहा है, आपको साक्षात् सुनने की भावना थी, सो अब पूरी होगी ।
सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात तो यह है कि आप मात्र शुद्धात्मा की ही बात करते हैं, विशुद्ध अध्यात्म की ही चर्चा करते हैं ।
अमेरिका में हम जहाँ-जहाँ भी गये, सर्वत्र आपकी बहुत प्रशंसा सुनी है । हमने एक भाई से आपके सभी कैसेट तैयार कराये हैं, जिन्हें हम भारत में अपने आश्रम में रखेंगे, अपने साधकों को सुनायेंगे । हमारा आश्रम गुजरात में बलसाड़ के निकट समुद्र के किनारे है, बहुत अच्छा स्थान है ।"