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जीवन-मरण और सुख-दुख
सफल वार्ता की निर्मल भूमिका के लिए आपको भी कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए, जिससे आवश्यक चर्चा के लिए सदाशयता का वातावरण बन सके।
___ मेरी यह भावना जानकर सेठीजी ने जिस प्रसन्नता से उसका स्वागत किया था, उससे मुझे आशा बंधी थी कि अब वातावरण में कुछ न कुछ नरमी अवश्य आयेगी ।
कुछ समय तक मुझे ऐसा लगा भी कि वातावरण सुधर रहा है, पर बाद में फिर गाड़ी उसी लाइन पर चल निकली । उसके बाद अभी तक तो कोई प्रसंग बना नहीं है, अब देखें कब बनता है ? ___ एकता, शान्ति, सहयोग का वातावरण जिसप्रकार आज सारी दुनिया में बन रहा है बड़े से बड़े विरोधी जिसप्रकार एक टेबल पर बैठकर समस्याएं सुलझा रहे हैं; उससे लगता है कि काल ही कुछ ऐसा पक रहा है कि जिसमें सभी समीकरण बदल रहे हैं; शत्रु नजदीक आ रहे हैं, मित्र दूर जा रहे हैं। दिगम्बर समाज के क्षितिज पर भी इसका असर दिखाई दे रहा हैं। कह नहीं सकते भविष्य में कब क्या समीकरण बने ? अतः इससमय बड़ी ही सतर्कता से समाज व धर्म के हित में काम करने की आवश्यकता है। समय की अनुकूलता का समाज के हित में उपयोग कर लेना ही बुद्धिमानी है, क्योंकि गया समय फिर लौटकर वापिस नहीं आता ।
मैं सदा आशावादी रहा हूँ । अतः मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन ऐसा अवश्य आयगा कि सन्देह के बादल विघटित होंगे और समाज में एकता के साथ-साथ नई स्फूर्ति भी आयेगी ।
मुझे अपना व्याख्यान समाप्त करके तत्काल ही लन्दन के लिए रवाना होना था, क्योंकि मेरा शाम को लन्दन में प्रवचन था; अतः सेठीजी को