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आत्मा ही है शरण
प्रतिष्ठा कार्यक्रमों के अतिरिक्त सहस्राधिक लोगों की उपस्थिति में २ जुलाई, १९८८ को चित्रभानुजी एवं योगेश मुनि के साथ हमारा और डॉ. जैनी का भी व्याख्यान हुआ । इसी हॉल में ३ जुलाई को हमारा एक व्याख्यान जैन शोसल ग्रुप के तत्त्वावधान में भी हुआ, जिसे चित्रभानुजी ने बहुत सराहा ।
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इसके अतिरिक्त हमारे प्रवचन २ जुलाई, १९८८ की शाम को रमेशभाई के घर, ३ जुलाई, १९८८ की शाम को हर्षदभाई शेठ के घर एवं ४ जुलाई, १९८८ की शाम को गिरीशभाई के घर हुए ।
श्री योगेश मुनि एवं डॉ. नरेन्द्र वक्सी के अनुरोध पर एक व्याख्यान आचार्य श्री सुशील मुनि के आश्रम में भी हुआ, जिसमें अधिकांश हिन्दी-भाषी भाई-बहिन उपस्थित थे ।
५ जुलाई, १९८८ को वाशिंगटन पहुँचे, जहाँ प्रतिवर्ष की भाँति सेंटमेरी कॉलेज के छात्रावास में शिविर आयोजित था । इस वर्ष का शिविर ७ जुलाई, ८८ से १० जुलाई, १९८८ तक इसप्रकार चार दिन का था ।
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इस शिविर में आरंभ के दो प्रवचन 'कुन्दकुन्द शतक' पर हुए । इसके बाद छहढाला की कक्षा चली । प्रतिदिन चार प्रवचन व रात में एक घंटे तत्वचर्चा होती थी । छहढाला की पहली व दूसरी ढाल पर एक-एक प्रवचन; तीसरी, चौथी व छठवीं ढाल पर दो-दो प्रवचन हुए, इसप्रकार छहढाला पर कुल आठ प्रवचन हुए; पाँचवीं ढाल छोड़ दी गई, क्योंकि उसमें समागत बारह भावनाओं पर गत वर्ष विस्तार से चर्चा व प्रवचन हो
चुके थे ।
रात्रिकालीन चर्चा में सभीप्रकार के प्रश्नोत्तर चलते थे । रात्रिकालीन चर्चा को छोड़कर सभी प्रवचनों के वीडियो केसेट तैयार किए गये । ऑडियो केसेट तो प्रत्येक व्यक्ति अपना-अपना करता ही था ।