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जीवन-मरण और सुख-दुख
पर प्रवचन हुआ । इसमें पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ पूरनचदजी गोदीका एवं जयपुर के प्रसिद्ध जवेरी श्री प्रसन्नकुमारजी सेठी भी उपस्थित थे । दूसरे दिन ११ जून, १९८८, शनिवार को जैनमंदिर में प्रवचन रखा गया । 'कुन्दकुन्द शतक' के पाठ के उपरान्त 'सम्यग्दर्शन' विषय पर मार्मिक प्रवचन हुआ । इस कार्यक्रम में दिगम्बर जैन महासमिति के कार्याध्यक्ष श्री रतनलालजी गंगवाल भी सपरिवार उपस्थित थे ।
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१२ जून, १९८८ को वोस्टन पहुँचे, रविवार होने से दिन के ३ बजे मन्दिर में कार्यक्रम रखा गया । 'कुन्दकुन्द शतक' के पाठ के बाद 'कुन्दकुन्द शतक' की उन्हीं गाथाओं पर प्रवचन हुआ । प्रवचनोपरान्त 'क्रमबद्धपर्याय' पर लगभग डेढ़ घण्टे तक गहरी तत्त्वचर्चा चली । रात्रि में राजेन्द्र जैन व नीलू जैन के घर पर उनके पुत्र की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में अन्य कार्यक्रम के साथ हमारी तत्त्वचर्चा का कार्यक्रम भी रखा
गया था ।
१३ जून, १९८८ को क्लीवलेन्ड पहुँचे, जहाँ जैन फैडरेशन ऑफ नार्थ अमेरिका के अध्यक्ष डॉ. तनसुख सालगिया के घर पर ठहरे । १४ जून, १९८८ को उन्हीं के घर पर 'कुन्दकुन्द शतक' के पाठ के उपरान्त 'कुन्दकुन्द शतक' पर ही प्रवचन व तत्त्वचर्चा हुई । अगले दिन १५ जून, १९८८ को अक्रोन में शान्ति मिनोत के घर चर्चा व प्रवचन के कार्यक्रम रखे गये ।
१६ जून, १९८८ को रोचेस्टर पहुँचे, जहाँ महेन्द्र दोशी एवं उर्मिला दोशी के घर पर ठहरे । इन्डियन कम्यूनिटी के हॉल में 'कुन्दकुन्द शतक' की गाथाओं के पाठ के उपरान्त उन्हीं पर प्रवचन व चर्चा हुई, दूसरे दिन कीर्ति शाह के घर पर प्रवचन व चर्चा के कार्यक्रम रखे गये ।
महेन्द्र दोशी अजमेर के हैं । उन्होंने 'क्रमबद्धपर्याय' में विशेष रस लिया । वे घर पर भी मुझसे घण्टों 'क्रमबद्धपर्याय' की चर्चा करते रहे । इन दिनों उनका 'क्रमबद्धपर्याय' का गहराई से अध्ययन भी चल रहा है । किशोरभाई