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आत्मा ही है शरण
मुनि श्री सुशीलकुमारजी स्थानकवासी सम्प्रदाय के साधु हैं, पर अमेरिका में वे बिना किसी भेदभाव के सभी के मुख में णमोकार मंत्र डाल रहे हैं। उनकी प्रेरणा से न्यूजर्सी में एक सौ सत्तरह एकड़ के विशाल भूखण्ड में एक आश्रम की स्थापना की गई है। उस स्थान का नाम रखा है "सिद्धाचलम्"। यद्यपि वे स्थानकवासी साधु हैं, मुँहपत्ती लगाते हैं; तथापि उसमें उन्होंने दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों प्रकार की मूर्तियाँ स्थापित कर रखी हैं। वे वहाँ शिखरजी, गिरनारजी, पावापुरी आदि सिद्ध क्षेत्रों के प्रतीक बनाने के साथ-साथ गोम्मटेश्वर बाहुबली की भी स्थापना करना चाहते हैं। वहाँ उनका बच्चों के लिए धार्मिक शिक्षण शिविर चल रहा था, जिसमें छोटे-बड़े ७५ छात्र सम्मिलित थे। __ जब उन्हें पता चला कि अमेरिका के विभिन्न नगरों के जैन सेन्टरों में मेरे व्याख्यान चल रहे हैं, तो उन्होंने जैन सेन्टरों के फैडरेशन अध्यक्ष डॉ. मनोज धरमसी के माध्यम से शिविर के समापन समारोह में मेरा व्याख्यान 'सिद्धाचलम्' में रखने की व्यवस्था कराई।
उक्त अवसर पर वहाँ लगभग सभी सेन्टरों के पदाधिकारियों से साथ-साथ ७५ छात्रों के अभिभावक, छात्र एवं अन्य समाज भी उपस्थित था। वहाँ "भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' विषय पर मेरा व्याख्यान हुआ तथा मुनिश्री के अनुरोध पर श्री टोडरमल स्मारक भवन, जयपुर से होनेवाली तत्त्व-प्रचार संबंधी गतिविधियों का परिचय भी दिया।
समस्त उपस्थित समाज के साथ-साथ मुनिश्री भी बहुत प्रभावित हुये। मुनिश्री ने व्याख्यान और सुगठित प्रचारतंत्र की हार्दिक प्रशंसा-अनुमोदना करते हुए समस्त अमरीका की जैनसमाज की ओर से मुझे 'जैनरत्न' की उपाधि से अलंकृत किया, जिसका करतल ध्वनि से सभी समाज ने अनुमोदन किया।
आगामी पीढ़ी में संस्कार सुरक्षित रहें - इस सन्दर्भ में लगभग सभी जगह हमने जो कुछ कहा; उसका सार इसप्रकार है :