________________
गाँठ खोल देखी नहीं ]
व्यंग करता हुआ छठा कहने लगा - "गायब हो जाता तो चोरी पकड़ी न जाती? अरे, यह सब इतनी चतुराई से किया गया होगा कि फंसे भी नहीं और माल भी।"
(८)
यहाँ सब लोग आपस में चर्चा कर रहे थे। वहाँ सब-कुछ समझते हुए भी सेठजी समझाते हुए बोले - "कैसा झूठ, कैसा धोखा, कैसा कर्जा?" विह्वल होते हुए चेतनलाल बोला -
"इस कांच के टुकड़े को आपने बेशकीमती बताया और मुझे छह महीने में हजारों रुपये देकर अपना कर्जदार बना लिया। अब मैं आपका कर्जा कहाँ से चुकाऊँगा ?"
"पगले, मैंने तो इस चेतनलाल को बेशकीमती बताया था। सो तू ही बता, जिसे छह महीनों में ही असली-नकली की पहिचान हो गयी, वह बेशकीमती लाल है या नहीं। अरे जीवनभर लाल परखने का धन्धा करनेवाले तेरे पिताजी भी जिसे न परख पाये, उसे तूने छह माह में अनुभव से ही परख लिया। तू अपनी शक्ति को तो पहचान।
आज तक सबने अचेतन लालों को ही परखा है, चेतन लालों को नहीं परखा। मैंने तो चेतनलाल को ही परखा था, उसी की कीमत बताई थी।"
"आपने मुझसे तभी सब-कुछ स्पष्ट क्यों नहीं कहा?"
"तब कहता तो तुझे विश्वास ही नहीं आता। जबतक स्वयं परखने की दृष्टि न हो तो उधार की बुद्धि से कुछ लाभ नहीं होता। यदि विश्वास आ भी जाता तो तू निराश हो जाता, इस ओर बढ़ता ही नहीं, पुरुषार्थहीन हो जाता। जौहरी बन ही नहीं पाता।
स्वयं से उद्घाटित सत्य जितना लाभदायक होता है, उतना दूसरों के द्वारा उद्घाटित नहीं। समय का भी अपना एक महत्त्व है।"
जब वह कुछ स्वस्थ हुआ तो कहने लगा -