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________________ साहित्य व समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी गति अबाध है । तत्त्वप्रचार की गतिविधियों को निरन्तर गति प्रदान करनेवाली उनकी नित नई सूझ-बूझ, अद्भुत प्रशासनिक क्षमता एवं पैनी पकड़ का ही परिणाम है कि आज जयपुर आध्यात्मिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया है। यह भी सबके लिए गौरव का विषय है कि दि. 8 अप्रैल 2001 को राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानन्दजी के पावन सान्निध्य में देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले के मैदान में डॉ. हुकमचन्दजी भारिल्ल का अभिनन्दन समारोह सम्पन्न हुआ; जिसमें 'तत्त्ववेत्ता डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल' अभिनन्दन ग्रन्थ का लोकार्पण किया गया। यही नहीं भारिल्लजी के प्रिय शिष्य डॉ. महावीरप्रसाद टोकर ने 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व' विषय पर शोधकार्य कर सुखाड़िया वि. वि. उदयपुर से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसीप्रकार अरुणकुमार जैन एम. ए. उत्तरार्द्ध के लिए लिखे गये लघु शोध प्रबंध के रूप में 'डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल और उनका कथा साहित्य' नामक ग्रंथ लिखा है । ये दोनों कृतियाँ भी प्रकाशित हो चुकी है। यह 'आप कुछ भी कहो' कृति भी अपने प्रकार की अनूठी रचना है। इसमें पौराणिक प्रसंगों पर नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। मूलत: बात तो पुरानी ही है; पर प्रस्तुतीकरण एकदम नया है, दिशा-बोध देनेवाला है। इसे पढ़कर लगता है कि प्रथमानुयोग में भी अगणित रहस्य भरे पड़े हैं, बस उन्हें पहिचानने वाला चाहिए । हमारा निरन्तर प्रयत्न रहता है कि उन्हें बाह्य कार्यों में कम से कम उलझना पड़े, जिससे वे अधिक से अधिक साहित्य साधना कर सकें, पर उनके प्रवचनों की लोकप्रियता के कारण यह बहुत कम सम्भव हो पाता है। इस अद्भुत रचना के लिए हम उनका आभार तो क्या मानें, हमारी तो हार्दिक भावना है कि वे अधिक से अधिक काल तक इस दिशा में सक्रिय रहकर स्थायी महत्त्व का साहित्य निर्माण करते रहें, साथ ही स्वामीजी के प्रभावना उदय को भी जाग्रत रखें, उनके द्वारा जलाई गई ज्योति को निरन्तर जलाये रखें। इस प्रकाशन का मूल्य लागत से भी कम करने हेतु जिन लोगों ने आर्थिक सहयोग दिया है, पृथक् से उनकी सूची दी गई है। उनके इस सहयोग के लिए हम हृदय से आभारी हैं। प्रस्तुत प्रकाशन को और भी अधिक लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से स्थान-स्थान पर चित्रों का प्रकाशन किया गया है। चित्रांकन का कार्य बालहंस के सम्पादक श्री अनन्त कुशवाहा द्वारा किया गया है; जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। चित्रों की कल्पना एवं प्रकाशन का सम्पूर्ण दायित्व विभाग के प्रभारी श्री अखिल बंसल ने बखूबी सम्हाला है। अतः ट्रस्ट उनका भी आभारी है। - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट 15 नवम्बर, 2005
SR No.009439
Book TitleAap Kuch Bhi Kaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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