________________
मानता है । जो टेढ़ी दृष्टि करके झुकाता है, उससे झुकनेवाला दाँतों के नीचे होंठ को दबाता है कि आने दे मेरा मौका, मैं भी बताऊँगा। क्रोधित होकर, बलवान होकर तुम किसी को झुकाओगे, तो झुकानेवाला तुम्हें बद्दुआयें देगा, तुम्हारे ऊपर हाय श्वासं छोड़गा और नासादृष्टि करके झुकाओगे तो तुम्हारे लिये एसी दुआएं देगा कि तुम महान बन जाओगे | इसीलिए महापुरुष अपने पर उपसर्ग करनवालों के प्रति भी अपकार का विचार ही नहीं करते। गजकुमार मुनि, पाँचों पाण्डव, पार्श्वनाथ आदि क उदाहरण से स्पष्ट होता है कि वे कितने क्षमाशील थे? और उनके क्षमाशील स्वभाव के कारण ही वे उत्तरोत्तर सुगति को प्राप्त हुये | उपसर्गों पर विजय क्षमाशील ही प्राप्त कर सकता है। कहा भी है -
कोहेण जोण तप्पदि, सुरणरतिरिएहिं कीरमाणेवि ।
उवसग्गेवि रउद्दे, तस्स खमा णिम्मला होदि || अर्थात् सुर, नर, तिर्यंचों के द्वारा उपसर्ग किये जाने पर भी जो क्रोध से संतप्त नहीं होते हैं और अन्य भी भयंकर उपसर्ग होने पर जो शांत रहत हैं, उनके ही निर्मल उत्तम क्षमा हाती है। वह विचार करता है- सब कर्मों के मारे हैं? कोई मुझे गाली दे रहा है, तो बचारा वह कर्मों का मारा है। वह मुझे जानता होता तो गाली नहीं देता। वह मुझ जानता नहीं है, इसलिये गाली दे रहा है। ज्ञानी कहता है कि पहचानता हाता ता वह गाली दे नहीं सकता और यदि पहचानता नहीं है तो यह गाली मुझे दी नहीं जा रही है। सच्चे साधक का यह लक्षण है। लेकिन जो सही वैराग्य के बिना पलायन कर परिस्थितिवश साधु इस भावना से बनते हैं कि चलो साधु बन जात हैं, आराम से जीवन निकल जायेगा, ऐसे ढोंगी साधुओं की
65)