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फाँसी पर चढ़ने से पहले तू मुझे अपनी विद्या दे-दे | चोर ने राजा को पूरी विद्या बता दी, पर राजा कुछ भी नहीं सीख सका। परन्तु जब राजा ने अत्यन्त विनय - पूर्वक चोर को अपने सिंहासन पर बिठाया और स्वयं नीचे बैठा, तब विद्या प्राप्त करने में राजा को देर न लगी । अतः हमेशा विनयाचार का पालन करते हुये शास्त्र - स्वाध्याय करना चाहिये । उपधानाचार धारणा करते हुये ग्रन्थ को पढ़ना चाहिये । जो कुछ पढ़ा जावे, वह भीतर जमता जावे, जिससे वह पीछे स्मरण में आ सके । यदि पढ़ते चले गये और ध्यान में न लिया, तो I अज्ञान का नाश नहीं होगा । इसलिये एकाग्र चित्त होकर ध्यान के साथ पढ़ना, धारणा में रखते जाना, उपधानाचार अंग है ।
बहूमानाचार शास्त्र को बहुत मान प्रतिष्ठा से विराजमान करके पढ़ना चाहिये । उच्च चौकी पर रखकर आसन से बैठकर पढ़ना चाहिये | शास्त्र को अच्छे वेष्टन से विभूषित करके विराजमान करना चाहिये । शास्त्र को लाते व ले जाते समय खड़े हो जाना चाहिये । अध्ययन करते समय अन्य वार्तालाप नहीं करना चाहिये ।
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अनिवाचार जिस शास्त्र, जिन गुरु से शास्त्रज्ञान प्राप्त किया हो, उनका नाम न छिपाना । छोटे शास्त्र या अल्पज्ञानी गुरु का नाम लेने से मेरा महत्त्व घट जायेगा, इस भय से बड़े ग्रन्थ या बहूज्ञानी गुरु का नाम नहीं बताना चाहिये ।
इस तरह आठ अंगो का पालन करते हुये शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिये ।
मोह के जाल में उलझा हुआ यह जीव इन्द्रिय-विषयों में सुख
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