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ज्ञान दोष को नाशता, बने जीव गुणगान | सद् गुण से ही जीव का, होय जगत् कल्याण ।। ज्ञान ही जग में मित्र है, ज्ञान ही भ्रात अरु तात | ज्ञान सहोदर जगत् में, ज्ञान भगनि और भ्रात || ज्ञान सूर्य का उदय कर, अपने हृदय मंझार | मिले सफलता कार्य में, कभी न होवे हार || ज्ञान की महिमा अगम है, को कर सके बखान | पाया जिसने ज्ञान को, उसको ज्ञान का भान || ज्ञानवान् यदि बाल है, तो भी चतुर सुजान | बूढ़ा भी मूरखा हुआ, उसकी क्या पहचान ।। ज्ञान बड़ा अनमोल है, नहिं कुछ इसका मोल | भरलो जितना बन सके, अपना हृदय खोल ।। ज्ञान को पाकर बढ़ चला, मोक्ष महल के द्वार | विशद ज्ञान से शीघ्र ही, छूट जाये संसार || मनुष्य-जन्म पाकर इसका विषय - भोगों में खो देना और आत्मसाधना न करना महामूर्खता है। ऐसे अमूल्य मनुष्य-जन्म को पाकर यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना चाहिये । इस जीव ने धन - सम्पप्ति तो अनेकों बार प्राप्त की, पर आत्म ज्ञान आज तक प्राप्त नहीं किया । सभी को स्वाध्याय का समय नियत कर लेना चाहिये और प्रतिदिन 1-2 घंटा स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये ।
स्वाध्याय स ही ज्ञान व वैराग्य की प्राप्ति होती है, जो आत्मा के लिये हितकारी है – “आतम हित हतु विराग-ज्ञान ।” यदि किसी से प्रेम करोगे, तो प्रेम बढ़ता चला जावेगा और यदि विरक्ति बढ़ाओगे तो, आत्मा में विरक्ति आती जावेगी। यदि हमने दुर्लभ मनुष्य पर्याय व जैन कुल पाकर भी ज्ञान और वैराग्य प्राप्त नहीं किया, तो मानों
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