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जागृत हाता है, आत्मा में रमण करने का उत्साह बढ़ता है, स्वानुभव जागृत हो जाता है, जिसके प्रताप से सुख-शान्ति का लाभ होता है, यह जीवन परम सुन्दर सुवर्णमय हो जाता है । जिनवाणी में सम्यग्ज्ञान की महिमा सर्वत्र गायी गई है
संयम से युक्त और ध्यान के योग्य जो मोक्ष का मार्ग है, उसका लक्ष्य जा शुद्ध आत्मा का स्वरूप है, सो सम्यग्ज्ञान से ही प्राप्त होता है, इसलिये ज्ञान का स्वरूप जानना योग्य है।
(श्री कुन्दकुन्दाचार्य, बोध पाहुड़) मिथ्याज्ञानी घोर तप करके जिन कर्मों को बहुत जन्मों में क्षय करता है, उन कर्मों को आत्मज्ञानी सम्यग्दृष्टि मन, वचन, काय को रोक करके ध्यान के द्वारा एक अन्तर्मुहूर्त में क्षय कर डालता है।
(श्री कुन्दकुन्दाचार्य, मोक्ष पाहुड़) जो साधु जिनवाणी में परम भक्तिवंत हैं तथा जो भक्तिपूर्वक गुरु की आज्ञा को मानते हैं, व मिथ्यात्व से अलग रहते हुए व शुद्ध भावों में रमते हुए संसार से पार हो जात हैं।
(श्री वट्टकेरस्वामी, मूलाचार प्रत्याख्यान अधिकार) यह जिनवाणी का पठन, पाठन, मनन एक ऐसी औषधि है जो इन्द्रिय-विषय के सुख से वैराग्य पैदा कराने वाली है, अतीन्द्रिय सुखरूपी अमृत को पिलाने वाली है, जरा, मरण व रोगादि से उत्पन्न होने वाले सर्व दुःखों को क्षय कराने वाली है।
(श्री वट्टकेरस्वामी, मूलाचार प्रत्याख्यान अधिकार) सम्यग्ज्ञानी ही मोक्ष जाता है, सम्यग्ज्ञानी ही पाप का त्यागता है, सम्यग्ज्ञानी ही नए कर्म नहीं बांधता है। सम्यग्ज्ञान से ही चारित्र होता है, इसलिये ज्ञान की विनय करनी योग्य है।
(श्री वट्टकेरस्वामी, मूलाचार षटावश्यक) (157)