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कलुषविकलता या, तां क्षमां वर्णयन्ति । ।
अर्थात् - नहीं -सुनने योग्य कर्कश, कठोर वचनों के बोलने पर भी जो कलुषता का अभाव है, उसे क्षमा कहते हैं । समता परिणाम धारण करने वाले की सूली भी सिंहासन हो जाती है, जैसे सेठ सुदर्शन | हम दुर्जनों से इसलिये घबराते हैं, क्योंकि कहीं-न-कहीं हमारे अंदर भी दुर्जनता होती है, किन्तु क्षमाशील व्यक्ति तो हर समय यह सोचकर शांत बना रहता है कि
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क्षमाखड्ग करे यस्य, दुर्जनः किं करिष्यति ? अतृणे पतितो बह्निः स्वयमेवोपशाम्यति ।।
अर्थात् क्षमारूपी तलवार जिसके हाथ में है, दुर्जन उसका क्या कर सकता है ? जैसे ईंधन से रहित स्थान में पड़ी हुई अग्नि स्वयं ही शांत हो जाती है ।
दुर्योधन ने बिगाड़ना चाहा पाण्डवों का भीम को जहर भरी खीर खिलाकर गंगा में डाल दिया। जैसे ही भीम पहुँचता है गंगा की तलहटी में ( यह कहानी वैष्णव सम्प्रदाय के अनुसार है ।) तो उसे नाग काटता है । जिसको जहर चढ़ा हो, उसको जहरवान काट ले तो जहर उतर जाता है। गर्मी को गर्मी मारती है, काँटे से काँटा निकलता है, निमित्त से निमित्त कटता है, ये नियम है । भीम को जहर चढ़ा था और जैसे ही नाग ने फण मारना शुरू किया, वैसे ही उसका जहर उतरने लगा। नाग सोचता है कि मैंने आज तक दुनिया में ऐसा नहीं देखा। मैंने जिसे फुंकार भी मार दी, वह मर गया; किन्तु मैं इसको काट रहा हूँ परन्तु यह जिन्दा हो रहा है । बेहोशी के स्थान पर होश में आ रहा है। निश्चित ही यह कोई महान आत्मा है, कोई पुण्यात्मा है । जितना मैं कायूँ, उनता ही होश में आता चला जा रहा
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