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के होता है। ज्ञान के साथ मजा यह है कि ''गंगा गए सो गंगादास और जमुना गए सो जमुनादास ।' मिथ्यात्व के साथ वही ज्ञान संसार के दःखों को दिलाने वाला है और सच्ची श्रद्धा के साथ वही ज्ञान संसार के दुःखों से मुक्ति दिलाने वाला है | आत्मज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है, वही विद्या है, शेष भौतिक ज्ञान का तो अविद्या कहा गया है | कहा भी है ‘सा विद्या, या विमुक्तये' | विद्या वही है, जो मुक्त करे या मुक्ति दिलाए। ____ आचार्य भगवन्तों का हमारे ऊपर असीम उपकार है। वे अपने जीवन के अनुभव की सब बातें हम बता गए हैं। उनके द्वारा लिखे गए शास्त्र हमारे लिए माइलस्टोन की तरह हैं | यदि हम उनके द्वारा कही गयी बातों का अनुकरण करं, उनक बताए मार्ग पर चलें, तो हम आसानी से अपने लक्ष्य या गंतव्य तक पहुँच सकत हैं।
आचार्य वीरसेन स्वामी ने धवलाजी में लिखा है कि जो आलस्य छोड़कर निरन्तर आत्मज्ञान का अभ्यास करता है, उसका यह आत्मज्ञान का अभ्यास आगामी जीवन में उसे केवलज्ञान की प्राप्ति में कारण बनता है। ऐसी अपूर्व महिमा है स्वाध्याय की। हमें पर-पदार्थों की नहीं, ज्ञान की कदर करना चाहिये । हमारी हालत उस कबूतर की तरह हो रही है, जो पेड़ पर बैठा है और पेड़ के नीचे बैठी हुई बिल्ली को देखकर अपना होश-हवाश खो देता है। अपने पंखो की शक्ति को भूलकर और घबराकर उस बिल्ली के समक्ष गिर जाता है, तो इसमें दोष कबूतर का ही है। हमें स्व-पर का भेदज्ञान नहीं है, इसलिय हम ज्ञान की कदर नहीं कर रहे हैं।
जो इन इन्द्रियों द्वारा जाना जाता है, वह मेरा स्वरूप नहीं है। आचार्य श्री ने लिखा है-हमारा स्वरूप क्या है? "अवर्णोऽहं” मेरा कोई वर्ण नहीं, "अस्पर्शोऽहं” मुझे छुआ नहीं जा सकता। यह मेरा स्वरूप
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