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लिया। इसी त्याग ने मुझे जैन बना दिया |
मैंने एक दिन गुरुजी से भी कह दिया कि पद्मपुराण में पुरुषोत्तम रामचन्द्र जी का जो चरित्र चित्रण किया गया है , वही मुझे सत्य भासता है। आपकी रामायण में रावण को राक्षस और हनुमान को बन्दर बताया है, इसमें मेरी श्रद्धा नहीं है | अब मैं उस मन्दिर नहीं जाऊँगा। और इसी प्रकार एक दिन माता जी से भी कह दिया कि आज से मैं जिनेन्द्र दव का छोड़कर अन्य को नहीं मानूंगा। मरा पहले से ही यह भाव था कि जैन धर्म ही मेरा कल्याण करेगा।
वैष्णव होते हुये भी मरे पिताजी की जैनधर्म में श्रद्धा थी। इसका कारण णमोकार मंत्र था, क्योंकि एक बार बाहर गाँव से बैलगाड़ी पर दुकान का माल लाते समय मार्ग वाले भयंकर वन में णमोकार मंत्र का स्मरण करने से शेर-शेरनी उनका मार्ग काटकर चले गय थे ।
स्वर्गवास क समय पिताजी न मुझे यह उपदेश दिया था कि - "बेटा! संसार में कोई किसी का नहीं है, यह श्रद्धान दृढ़ रखना । मैंने णमोकार मंत्र के स्मरण से अपने को बड़ी-बड़ी आपत्तियों से बचाया है। तुम निरन्तर इसका स्मरण रखना। तुमको यदि संसार बन्धन से मुक्त होना इष्ट हो तो इस जैन धर्म में दृढ श्रद्धान रखना। इसकी महिमा का वर्णन हमारे जैसे तुच्छ ज्ञानियों द्वारा हाना असम्भव है। तुम इसे जानने का प्रयास करना।
एक बार मेर चचेरे भाई लक्ष्मण असाटी के विवाह में मैंने अपने काकाजी से भी कह दिया कि यहाँ तो अशुद्ध भाजन बना है। मैं पंक्ति में सम्मिलित नहीं हो सकता। इसस मेरी जाति वाले बहुत बिगड़े और मेरा जाति-बहिष्कार कर दिया, जिसे मैंन हाथ जोड़कर स्वीकार कर लिया | मेरी पत्नी, माँ के बहकावे में आ गई और कहने लगी कि तुमने अपना धर्म परिवर्तन कर बड़ी भूल की है। अब फिर
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