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सकता।
इस बात को "चक्की के कीले के पास के दाने' इस लौकिक दृष्टान्त द्वारा समझा जा सकता है | गेहूँ आदि अन्न पीसने वाली चक्की में जितने गेहूँ के दाने डालते जाते हैं, उनमें चक्की के कीले के पास के दाने नहीं पिसते, और-सब पिस जात हैं। उसी प्रकार हे भव्य प्राणियो! यह संसार रूपी महा भयानक चक्की है। इसके जन्म-मरण रूपी दो पाट हैं। प्रायः इसमें पड़ कर सभी जीव पिस जाते हैं, दुःखी हैं, किन्तु जो धर्मात्मा पुरुष सच्चे देव, शास्त्र और गुरु रूपी कीले का आश्रय ले लेता है, वह कभी इस भयानक संसार रूपी चक्की में नहीं पिसता। क्योंकि उसे स्वर्गादिक की प्राप्ति होकर परंपरा से मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हो जाती है। जिस प्रकार पारस पत्थर के संयोग से लाहा स्वर्ण हो जाता है, उसी प्रकार भगवान रूपी पारसमणि के संयोग से यह प्राणी भी विशद् ज्ञानी और तेजस्वी हो जाता है। श्री मानतुंगाचार्य ने भक्तामर स्तोत्र में लिखा है
नात्यद्भुतं भुवन भूषण भूतनाथ, भतैर्गुणै भुवि मवन्तम भिष्टु वन्तः । तुल्याः भवन्ति भवतो ननु तेन किंवा,
भूत्याश्रितं य इह नात्म समं करोति ।। हे संसार के भूषण! आपके पवित्र गुणों से आपकी स्तुति और पूजन करने वाले मनुष्य आपके समान हो जात हैं- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है, क्योंकि दुनिया में वे स्वामी मान्य नहीं हैं, जो अपने अधीन सेवकों को धन द्वारा अपने समान नहीं बनाते । ___ भगवान वीतरागी होने से कुछ देते नहीं है, लेकिन उनके आलम्बन के बिना कुछ मिलता भी नहीं है | जब तक हम भगवान के सच्च स्वरूप को नहीं जानेंगे, तब तक अपने आत्मस्वरूप को भी
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