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भगवान का शत्रु कौन है? विषय-कषाय, या विषय-कषायों का शत्रु कौन है? भगवान | तो भगवान के दुश्मन विषय-कषाय हैं। यदि भगवान के शत्रु विषय-कषायां से हमारी रुचि हो, तो क्या भगवान की भक्ति बन सकती है? नहीं बन सकती है | अतः हम भगवान की भक्ति करते समय अपन चित्त से समस्त बाह्य पदार्थों को हटा दें, केवल भगवान का ही अनुभव बनायें, तो हमारी भगवान की भक्ति सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान प्राप्त करने में कारण बने गी। जो जिनेन्द्र भगवान की भक्ति नहीं करता, वह जघन्य काटि का मनुष्य है | कहा भी है
के चिद्वदन्ति धनहीनज नो जघन्यः, के चिद्वदन्ति गुणहीनजनो जघन्यः । ब्रूमा नयं निखिलशास्त्र विशेषविज्ञाः,
परमात्मनः स्मरणहीनजनो जघन्यः || कुछ लोगों का यह सिद्धान्त है कि जिसक पास धन नहीं है अर्थात् जो दरिद्र है, वह जघन्य कोटि का मनुष्य है | कुछ लोगों का सिद्धान्त है कि जिसने मानवीय जीवन सदृश उच्च पद प्राप्त करके सद्विद्या, सदाचार आदि मानवोचित गुण प्राप्त नहीं किये, वह जघन्य कोटि का मनुष्य है | सभी शास्त्रों के विद्वान यह कहते हैं कि जिसका हृदय भगवान की भक्ति से शून्य है, वह जघन्य कोटि का मनुष्य है। "नीतिवाक्यामृत' में लिखा है
''देवान् गुरुन् धर्म चोपाचरन् न व्याकुल मतिः स्यात् ।' वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी तीर्थकर भगवान की सेवा-पूजा करने वाला तथा निर्ग्रन्थ, सम्यग्ज्ञान और आत्मध्यान में लीन, ऐसे साधुओं की उपासना करने वाला तथा भगवान तीर्थकर के कहे हुये दयामयी धर्म की भक्ति करने वाला प्राणी कभी दुःखी नहीं हो
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