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* सम्यग्ज्ञान
सम्यग्ज्ञान मोक्षमार्ग का द्वितीय रत्न है। स्व-पर-पदार्थों का उनके अनेक धर्मों सहित पहचान कराने वाला सम्यग्ज्ञान होता है। जिस प्रकार आँखों के बिना मनुष्य अपने समीप में रखी हुई वस्तु भी नहीं देख सकता, उसी प्रकार बिना सम्यग्ज्ञान के निज आत्मा भी नहीं जान पड़ता। सम्यग्दर्शन भी तभी होता है जबकि जीव को तत्त्वों का कुछ ज्ञान हो, आत्मा-पुद्गल का विवेक हो, संसार-मोक्ष का परिज्ञान हो, आस्रव-बंध की जानकारी हो। ध्यान भी बिना ज्ञान के नहीं हा सकता। इस कारण यद्यपि ज्ञान में सम्यक्पना, सम्यग्दर्शन हो जाने के बाद होता है, परन्तु मूल में देखा जाये ता आवश्यक ज्ञान हुए बिना सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति नहीं हो सकती। सम्यग्ज्ञान के अभाव में इस जीव ने संसार में परिभ्रमण करते हुये अनन्त भव धारण किये और अनन्त दुःख भोग | राजा हुआ, भिखारी भी हुआ, स्वर्ग में गया और नरक में भी गया। सुख पैसा, मकान, मोटर, स्वर्ग के वैभव आदि में नहीं है। सच्चा सुख तो सम्यग्ज्ञान में है | सच्च ज्ञान बिना, अज्ञान के कारण अपने आत्म स्वरूप को न पहचान पान के कारण ही जीव संसार की चार गतियों में रुलता हुआ अनन्त दुःख भोग रहा है | संसार की चारों गतियों क दुःखों से छूटकर, मोक्षसुख को प्राप्त करने क लिये सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करो | अनेक कुयोनियों में भ्रमण करते हुये हम लोगों ने यह दुर्लभ
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