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लेकर घर पहुँचे । उनकी पत्नी विरक्त थी। ऐसी स्थिति होती है, किसी घर में पत्नी विरक्त होती है तो किसी घर में पुरुष विरक्त होता है | जब पं. जी ने पत्नी को साड़ी दी तो वे बोलीं आप यह साड़ी क्यों लाये? पं. जी बोले तुम्हारे लिये लाये हैं। आप इतनी भड़कीली साड़ी क्यों लाये? अरे तुम्हें खुशी होगी इसलिये लाये हैं। पत्नी बोली मैं तो पहले ही खुश हूँ| यदि मैं यह साड़ी पहनकर निकलूँगी ता कैसा लगगा? पं. जी बोलते हैं तुम अच्छी दिखोगी। तब वह पण्डिताइन गम्भीर हाकर बोली कि अच्छी दिखूगी तो उसका परिणाम क्या निकलेगा? मुझे दुनिया को नहीं रिझाना, और आप तो मुझ पर पहले से ही रीझे हुये हो, तभी तो ये साड़ी लाये हो । मुझे इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। उसने नौकरानी को बुलाकर कहा-यह साड़ी वापिस कर आओ और जितने भी पैसे वापिस मिलें उन्हें तू रख लेना। नौकरानी साड़ी वापिस करने चली जाती है | पंडितजी का मन थोड़ा फीका हो गया। वे कुर्सी पर बैठ गये तब वह पण्डिताइन उनक पास आकर कहती है, अब ता अपने दो बच्चे हा चुके हैं और इससे अधिक की अपन को आवश्यकता भी नहीं है, अगर अपन ब्रह्मचर्य व्रत ले लें तो कैसा रहेगा। जब 5 मिनट तक भी पंडित जी काई जवाब नहीं देते हैं तो वह पण्डिताइन पंडित जी की गाद में जाकर बैठ गई और बोली-पिताजी अब ता मैं अपना शेष जीवन ब्रह्मचर्य पूर्वक व्यतीत करना चाहती हूँ | पंडित जी चकित हो जाते हैं और कहते हैं बटी आज तूने वो काम कर दिया जो मैं सैकड़ों शास्त्र पढ़ कर भी नहीं कर पाया | आज तूने मेरी आँखें खोल दीं, अब मैं संकल्प लेता हूँ कि जीवन भर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करूँगा। सन 1961 की एक घटना है। वर्णी जी की जब चिता जल रही
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