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किसी की दृष्टि तो नहीं बिगड़ती, अगर बिगड़ती है तो आप उस पाप कर्म में निमित्त बन रहे हैं । अगर कोई स्त्री पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित है, और उस समय वह मंदिर में आलोचना पाठ-पूजन, प्रतिक्रमण जैसी क्रियाओं को करती है, तो उसकी क्रियायें तोता रटंत जैसी हैं। तोता राम का नाम तो लेता है लेकिन वास्तविक राम से वह परिचित नहीं हो पाता । तोता रट लेता है कि शिकारी आता है, जाल फैलाता है, दाने का लोभ दिखाता है, जाल में फँसना नहीं चाहिए। ऐसी ही वह स्त्री जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित और पूजन, व्रत आदि कार्यों को सम्पन्न कर रही है, मन में सोच रही की पाप नहीं करना चाहिए और पाप कर रही है, क्योंकि प्रदर्शन का लोभ जो मन में आ जाता है । हमारे श्रृंगार करने से दूसरों का मन भी चलायमान हो जाता है ।
एक बार एक लड़की सजधज कर स्कूटी पर बैठकर जा रही थी, उसे देखकर चार लड़कों ने उसको छेड़ा, तो उसने पुलिस में रिपोर्ट कर दी। दूसरे दिन सभी को अदालत में जज के सामने पेश किया गया और लड़कों से जज साहब ने पूछा, क्यों भाई तुमने इस लड़की को छड़ा है? चारों लड़के बोले जज साहब हम गीता की सौगंध खाकर कहते हैं, राम की सौगंध खाकर कहते हैं कि हमने इस लड़की को छड़ने की बात तो अलग है हमने इसे देखा भी नहीं है । जज साहब इस प्रकार की बात सुनकर असमंजस में पड़ जाते हैं कि यहाँ यह लड़की स्वयं कह रही है कि हमको इन लड़कों ने छेड़ा है और ये लड़के भी कह रहे हैं कि छेड़ने की बात तो अलग है, हमने इसे देखा भी नहीं । जज साहब ने लड़की से पूछा- क्या बेटी तुम्हें सही याद है, कहीं तुम भूल तो नहीं रही हो, ये दूसरे लड़के हों । तब लड़की ने अपने सिर पर गीता को रखते हुए कहा कि जज साहब ये
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