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यह सुनकर सरकारी वकील चुप रह गया | बचाव पक्ष का वकील मुस्कराने लगा। न्यायालय ने संदेह का लाभ देकर बिरजू को बरी कर दिया। गाँव लौटने पर सुखिया के घर भीड़ लग गई | गाँव के सरपंच ने सुखिया से पूछा कि उसने झूठी गवाही क्यों दी? और अपने पुत्र किशन की हत्या का बदला क्यों नहीं लिया? न्यायालय में सत्य बात क्यों नहीं कही? सुखिया ने कहा-मैंने पंडित जी से कथा में सुना था किसी को क्षमा कर देना सबसे बड़ा धर्म है। मैं जानती थी कि मेरी गवाही से बिरजू को फाँसी हो जायेगी, पर उससे मेरा क्या भला होगा? जैसा मेरा संसार उजड़ गया, वैसा ही एक माँ का संसार और उजड़ जायेगा। अतः मैंन झूठी गवाही देकर बिरजू को बचा लिया।
भीड़ से निकलकर बिरजू वहाँ आ गया और सुखिया के पैरों पर गिरकर बोला-अब तुम ही मरी माँ हो, मैं ही तुम्हारा किशन हूँ | अब मैं यहीं रहूँगा और जीवन भर तुम्हारी सेवा करूँगा। अब तुम ही मेरी सच्ची माँ हा । सुखिया ने कहा – बेटा! तुम अपनी माँ की सेवा करो, मैं तो किसी तरह अपना जीवन बिता लूँगी । इस पर बिरजू बोला-नहीं, माँ! अब मैं तुम्हारे चरणों में ही रहूँगा, तुमने मेरी रक्षा की है | बिरजू ने सुखिया के चरणों को छोड़ने से इन्कार कर दिया। बिरजू की माँ भी वहाँ आ गई। वह भी सुखिया के सामने नतमस्तक हो गई और बोली-तुम सबसे बड़ी माँ हो । बिरजू अब तुम्हारा ही है। मैं ता उसे देखकर ही सुखी रह लूँगी। गाँव क सरपंच, पंच एवं सभी नागरिक सुखिया माँ की प्रशंसा करने लग- आज से अब तुम सिर्फ किशन की ही नहीं, सार गाँव की माँ हो । तुम्हारे आदर्श से हमारे गाँव का सम्मान बढ़ा है | हम सब प्रतिज्ञा करते हैं कि अब कोई किसी प्रकार का झगड़ा गाँव में नहीं होगा। सभी प्रेम एवं प्रसन्नता से रहेंगे |
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