________________
अब उसे किशन की अर्थी देखने को मिली। आसपास के लोग भी सुखिया माँ के इस असामयिक दुःख से दुःखी थे । उधर पुलिस ने बिरजू को गिरफ्तार कर लिया। उस पर मुकदमा चला। सुखिया माँ की गवाही भी पुलिस ने दर्ज कर ली थी । उसने अपने पुत्र किशन पर बिरजू द्वारा किये गये प्रहार को देखा था । अतः उसने बताया कि बिरजू ने एक बड़ी लाठी से किशन के सिर पर घातक प्रहार किया है, इससे ही उसके प्राण गये। वही एकमात्र घटना की गवाह थी । अतः उसकी गवाही महत्त्वपूर्ण थी ।
यह निश्चित था कि बिरजू को हत्या के अपराध में फाँसी होगी या आजीवन कारावास का दण्ड मिलेगा। इससे बिरजू की माँ बहुत दुःखी रहने लगी। कुछ समय बाद सुखिया के हृदय में बिरजू की माँ के प्रति सहानुभूति पैदा हो गई और उसने बिरजू को बचाने के लिये न्यायालय में अपनी गवाही को बदलने का निर्णय कर लिया ।
निश्चित तारीख पर बिरजू की पेशी हुई । सुखिया भी गवाही के लिये बुलाई गई । उससे पूछा गया - क्या उसने बिरजू को अपने पुत्र किशन पर लाठी का वार करते देखा था? सुखिया ने कहा- मैंने किशन पर लाठी चलाते हुये किसी को देखा तो था, पर वह कौन था, मैं समझ नहीं सकी । संभवतः वह व्यक्ति पायजामा पहने था । पुलिस की गवाही बिगड़ रही थी । अतः वकील ने सुखिया का वह बयान पढ़कर सुनाया जो उसने घटना स्थल पर दिया था । इसमें उसने कहा था कि बिरजू ने ही लाठी का घातक प्रहार किशन पर किया था । इस पर सुखिया ने उत्तर दिया कि "मेरी दशा उस समय पागलों की तरह थी। मैंने पुत्र के शोक में क्या कहा और पुलिस ने क्या लिखा? यह मैं नहीं जानती। अब जो अपने होशोहवास में कह रही हूँ, वह सच है । "
53