________________
इसलिये कहा है – “मातृवत् परदारेषु" परद्रव्य लोष्टवत् । सद्गृहस्थ परस्त्री को माता क समान मानता है और दूसरे के धन को कंकर पत्थर की तरह अपने लिये हेय समझता है |
एक बार की घटना है - शिवाजी ने कल्याण प्रान्त को अपने अधिकार में करने क लिये सेना को युद्ध करने भेजा। शिवाजी की सेना विजय श्री प्राप्त कर लौटी तब शिवाजी ने मंत्री से पूछा - "मंत्री! कल्याण प्रान्त पर अधिकार करके आप क्या-क्या उपहार लाये हैं?" मंत्री ने कहा "महाराज! भारत की सबसे सुन्दर, अनुपम उपहार वस्तु आपक लिये लाया हूँ। वह है कल्याण प्रान्त के सरदार की बहू, जो रूप-सौन्दर्य में विख्यात है।" यह सनकर शिवाजी उदास होकर बाल - मंत्री! तुमसे मुझे इस घोर अनर्थ होने की आशा नहीं थी। उस सरदार की बहू क्या तुम्हारी और हमारी बहू नहीं हैं? वह अपनी बटी क तुल्य है। जाओ, उसे आदरपूर्वक उसके घर छाड़कर आओ | जो अपने शीलव्रत में दृढ़ हाते है वे परस्त्री को “परदारेषु मातृवत्" माता और पुत्री के समान देखते हैं।
सतियां की जीवन गाथा पड़ने पर पता चलता है कि उन्होंने अपने उपर आये पहाड़ क समान बड़ी-बड़ी विपत्तियों को भी हँसते-हँसते झेल लिया, पर अपने शील का सुरक्षित रखा।
__मुगलों के शासन काल में दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की और वहाँ क शासक को कैद कर लिया | वह रानी पद्मावती के महल में जा पहुँचा | उस समय रानी पद्मावती व अनेक शीलवती नारियों ने संकट कालीन अवस्था में अपने शील की रक्षा के लिये आग में कूदकर जौहर किया। कहा जाता है कि उस समय राख में साढ़े इकतालीस मन सोने की नथें मिली थीं। इससे
(664