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थी। उन्होंने (सब मित्रों न) वहाँ एक नौका की और उसमें एक-एक करके सब बैठ गय | अन्त में युवती ने कहा- “दयाचरणजी! जरा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे नौका पर चढ़ा दीजिये | दयाचरण ने हाथ पकड़ कर उसे नौका पर चढ़ा दिया। नदी के उस पार घूम करके लौटते समय भी वह युवती दयाचरण से अपना हाथ पकड़ाकर ही नौका पर से उतरी। इस बार जैसे ही दयाचरण ने युवती का हाथ पकड़ा, वैसे ही उसके शरीर में कम्पन्न सा दौड़ गया, (घर आकर वह युवती के लिये तड़फने लगा। उसने युवती के साथ बिना कुछ विचारें भावुकता में आकर विवाह कर लिया। अब पिता के यहाँ से आने वाला पैसा कम पड़न लगा | क्योंकि पैसा एक के खर्च के हिसाब से आता था और अब खर्चा दो व्यक्तियों का हो गया था । एक दिन दयाचरण ने भारतीय संस्कृति के अनुसार युवती को भोजन बनाने को कहा, तब युवती ने उसे निर्धन जान पूरे नगर, आफिस, पड़ोस आदि में यह हल्ला कर दिया कि दयाचरण नपुंसक है । अतः मैं इसे तलाक देती हूँ |
युवती के गर्भ में बच्चा था । उसका भी गर्भ में ही काल के गाल में सुला दिया। रात्रि में सोते हुये दयाचरण को यह आवाज आई कि मैं तुम्हारा पुत्र हूँ, मैं सैकड़ां खण्ड-खण्ड करके फेका गया हूँ | यह सुनकर वह डर गया और अपने घर लौट आया। घर आने के पश्चात् भी वह अपनी पत्नी करुणा को सामने नहीं देखता था। एक दिन करुणा ने उससे कहा कि आप विलायत की बातं सभी को सुनाते हैं, थाड़ी हमें भी सुना दिया करो। इस प्रकार के मधुर वचन सुनकर, उसके रूप को देखकर वह करुणा पर आसक्त हो गया ।
तीसरा कारण है, मधुर गान सुनने से - स्त्री के मधुर गानको सुन, पुरुष उसमें आसक्त हो जाता है और पुरुष के मधुर वचन
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