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कन्या) को देखकर मोहित हो गये । उनके दर्शन-पूजन आदि के पवित्र भाव तत्काल उसी प्रकार विलीन हो गये, जिस प्रकार वायु के निमित्त से बादल विलीन हो जाते हैं । वे बार-बार उसी के बारे में चिन्तन करने लगे और अपने जिनेन्द्र देव की भक्ति के शुभ उद्देश्य को भूल गये ।
तात्पर्य यह है कि जिनदत्त मात्र अचेतन पाषाण में बनी कन्या में आसक्त होकर जिनेन्द्र भक्ति को भूल गये, तो जो निरन्तर टी.वी. पर पिक्चर एवं चित्रहार के चित्रां, हीरो-हीरोइनों की फोटो आदि देखते हैं उनका क्या होगा? अतः स्त्रियाँ, पुरुषों के चित्रादि को तथा पुरुष, स्त्रियों के चित्रादि को नहीं देखें ।
दूसरा कारण है :
2. स्त्री के अंगों के स्पर्श से भी वेदकर्म की उदीरणा होती है - श्रीमान् दयाचरण ने बहुत समझाने के बाद भी शादी के बंधन को स्वीकार नहीं किया। फिर भी माता-पिता ने जबरन करुणा नाम की एक भोली-भाली युवती के साथ उसका विवाह करवा दिया | लेकिन दयाचरण ने एक दिन भी करुणा को पत्नी की दृष्टि से नहीं देखा | एक बार पिता के बहुत मना करने के बाद भी उसने विलायत में पढ़ने की स्वीकृति ले ही ली, पर विलायत पहुँचने पर भी वह कभी किसी स्त्री से बात करना तो दूर, किसी स्त्री के सामने तक भी नहीं देखता था । हमेशा नीची दृष्टि ही रखता था । उसकी इस चर्या से उसकी मालकिन बहुत प्रसन्न रहती थी । एक दिन एक युवती ने आकर कहा - "आज आपके मित्र नदी के उस पार बर्फ देखने जा रहे हैं, आपका भी निमंत्रित किया है । आप अवश्य आइयेगा ।" दयाचरण व्यवहार के नाते बर्फ देखने चला गया। नदी के घाट पर बहुत भीड़
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