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________________ दिय, लेकिन वेश्या में आसक्त चारुदत्त घर नहीं आया । अन्त में घर का पैसा समाप्त हो जाने के कारण वसन्ततिलका वेश्या की माँ ने चारुदत्त से प्रेम तोड़ने के लिये वसन्ततिलका से कहा । लकिन वसन्ततिलका ने चारुदत्त से प्रेम ताड़ने के लिये साफ-साफ मना कर दिया। जिसस क्रोधित हो वसन्ततिलका की माँ ने चारुदत्त को भोजन में मूर्छित होने का द्रव्य खिलाकर मूर्छित कर दिया और रात्रि में उसे एक कपड़े म बाँधकर एक गठरी बनाकर शौचालय में डाल दिया । कहने का भाव यही है कि चारुदत्त एक सर्वगुणसम्पन्न व्यक्ति होकर भी कुछ क्षण वश्या के संसर्ग से मोहित हो अपने माता-पिता तक का भूल गया और वसन्ततिलका एक वश्या की पुत्री होकर भी चारुदत्त जैस धर्मात्मा का संयोग (संगति) पाकर एक पतिव्रता बनकर स्वदार संतोष व्रत का पालन करने वाली बन गयी। अतः हर व्यक्ति को अपने जीवन का उत्थान तथा अपने स्वदार संतोष व्रत या ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा करने के लिय निरन्तर कुशील, दुराचारी व्यक्तियों की संगति छोड़नी चाहिये और शीलवान, सदाचारी धर्मात्माओं की संगति करनी चाहिए। ___4. वेदकर्म की उदीरणा से- कामात्पादक गरिष्ठ व स्वादिष्ट भोजन करने से, पूर्व में भोगे हुये विषयों को याद करने से, कुशील पुरुषों की संगति से, कुशील काव्य व कथादि सुनने से, पिक्चर या टी.वी. पर ऐसे चित्र, कुशील नाटक आदि देखने से भी वेदकर्म की उदीरणा होती है। वद नामक कर्म की उदीरणा के कारणों में कुछ कारण निम्न लिखित हैं 1. स्त्री के चित्रादि को देखने से | 2. स्त्री के अंगो का स्पर्श करने से | 646)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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