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परन्तु माता-पिता क बहुत आग्रह करने पर उसने अपने मामा की लड़की गुणवती के साथ विवाह कर लिया, लेकिन विवाह क बाद भी वह पत्नी स इतना विरक्त रहा कि यौवनवती, रूप-लावण्य और प्रम की मूर्ति अनेक गुणों से सम्पन्न गुणवती उसको अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पायी । वह इतना उदासीन था कि वह (गुणवती) उसके पास घण्टों बैठी रहती तो भी वह उससे बात करना तो दूर रहा, आँख उठाकर भी नहीं देखता था। पुत्र की इतनी विरक्तता देख माँ हर क्षण चिन्तित रहती थी। एक दिन सुभद्रा ने अपने देवर (चारुदत्त क चाचा) रुद्रदत्त को बुलाकर चारुदत्त की पूरी स्थिती बता दी। रुद्रदत्त और सेठानी सुभद्रा दोनों ने मिलकर एक युक्ति साची कि यदि इसे भोगियों की संगति में डाल दिया जाये तो अवश्य ही अपने कार्य की सिद्धि हा सकती है। षडयन्त्र के अनुसार एक दिन रुद्रदत्त चारुदत्त को लेकर बाजार में गया और वहाँ (षडयन्त्र के अनुसार) हाथी को सामने आता देख डर कर चारुदत्त रुद्रदत्त के साथ एक वेश्या के घर में प्रवेश कर गया।
वहाँ चारुदत्त ने अपना समय व्यतीत करने क लिये वेश्या पुत्री वसन्तातलका के साथ जुआ खेलना प्रारम्भ किया एवं जआ खेलते-खेलत वह वसन्ततिलका के साथ वहीं रहने लगा और घर से धन मँगवाकर वेश्या के साथ नाना प्रकार की क्रियायें करने लगा। उसन अपने घर से सोलह करोड़ दीनार की सम्पत्ति मँगवा ली । एक दिन पिता ने उसे घर बुलाने के लिए स्वयं क बीमार होने के समाचार भिजवाये, पर बीमारी का समाचार सुनकर भी वह घर नही आया। पिता के द्वारा किय गये और भी अनेक प्रयासों के बाद भी जव बह घर नहीं आया तो अन्त में अपने कार्य की सिद्धि के लिये सेठ भानुदत्त (चारुदत्त क पिता) ने अपने मरने क समाचार भिजवा
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