________________
सामने एक महीने तक मौत खड़ी रही, वैसे ही मेरी हर धड़कन के साथ ईश्वर का स्मरण रहता है। ऐसा बोध-पाठ मिलने के बाद जिज्ञासु का जीवन ही बदल गया ।
मृत्यु का सतत् बोध हमें जीवन की गहराइयों में ले जाता है । दूसरे की मृत्यु से अपनी मृत्यु का बोध ले सकते हैं, क्योंकि हर पीले पत्ते का टूटना हमारी मौत है, हर पानी के बुलबुले का फूटना हमारी मौत है, हर अर्थी का उठना हमारी मौत है, अगर हम चिन्तन कर सकें तो | लेकिन आदमी बड़ा बेईमान है । यदि पड़ोस में किसी की मृत्यु हो जाए तो लोग कहते हैं, बेचारा चला गया। इस लहजे में यह बात कही जाती है, जैसे हम तो अमर रहने वाले हैं । इसलिए किसी की सड़क से गुजरती अर्थी को देखकर यह मत कहना कि बेचारा चल बसा, अपितु उस अर्थी को देखकर सोचना कि किसी दिन मेरी अर्थी भी इस तरह से गुजरगी ।
वस्तुतः चेतन आत्मा में विहार करना, समस्त राग-द्वेषों से निवृत होना, उपयोग की धारा को सीमित कर, पर- भावों से हटाकर, अपने ब्रह्मस्वरूप में रमण करना ही ब्रह्मचर्य कहलाता है ।
आचार्य श्री ने लिखा है स्व की ओर आने का कोई रास्ता मिल सकता है, तो देव - शास्त्र - गुरु से ही मिल सकता है, अन्य किसी से नहीं मिल सकता। इसलिये इनको तो बड़ा मानना ही है, तब तक मानना है, जब तक कि हम अपने आप में लीन न हो जायें । भगवान का दर्शन करना तो परमावश्यक है, पर यह ही हमारे लिये पर्याप्त है, यह मन में मत रखना । भगवान बनने के लिये यदि आप भगवान की पूजा कर रहे हैं, तो कम-से-कम मन में भाव तो उठता है कि अभी तक पूजा कर रहा हूँ, पर भगवान क्यों नहीं बन रहा हूँ?
—
634