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जीवन में रहकर जीवन में स्त्री सहवास कितनी बार करना चाहिये ? सुकरात ने कहा- मात्र सन्तान प्राप्ति की भावना से एक बार करना चाहिये। यदि मन न माने तो ? सुकरात ने कहा- वर्ष में एक बार । व्यक्ति ने कहा फिर भी मन न माने तो ? सुकरात ने कहा छः मास में एक बार, फिर भी मन न माने तो ? सुकरात ने कहा - तीन माह में एक बार । व्यक्ति ने कहा फिर भी मन न माने तो ? सुकरात कहा 15 दिन में एक बार । व्यक्ति ने कहा मन फिर भी न माने तो -
सुकरात ने कहा सिर में कफन बांध कर जो करना हो सो करा | आचार्य समन्तभद्र महाराज ने लिखा है शरीर के स्वरूप का चिंतन कर उससे विरक्त होने की चेष्टा करना चाहिये ।
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मलबीजं मल योनिं गलन मलन गन्ध विभत्स । यः यन्नंगमनंगाद विरमतिया ब्रह्मचारी सः ।।
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स्त्री का शरीर मल का बीज है, मल का स्थान है, गलने - सड़ने शरीर की वास्तविकता को जानकर
वाला है, वीभत्स है। उसके विरक्त होना ही ब्रह्मचर्य है ।
वास्तव में ब्रह्मचर्य के धारी तो मुनिराज ही होते हैं, पर आचार्यों ने श्रावक को स्वदार सन्तोष व्रत के पालन करने का उपदेश दिया है | यदि हम पूर्ण ब्रह्मचर्य नहीं ले सकते, तो स्वदार संतोष व्रत को ब्रह्मचर्य की कोटि में रखा है। अपनी पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्रियों को माँ, बहिन, बेटी के समान समझना ।
विचार करो, व्यर्थ के विषय प्रसंग में जीव को क्या मिलता है ? कुछ भी तो नहीं। बल्कि सब कुछ गँवा दिया जाता है । ब्रह्मचर्य में बाधक वैसे तो सभी इन्द्रियों के विषय हैं, परन्तु कुशील पाप की इसमें मुख्यता है। उसकी विवेक शक्ति नष्ट हो जाती है । कहते हैं
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