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भगवान को देखकर रति प्रश्न करती है और कामदेव उत्तर देते हैं ।
'हे नाथ! ये कौन हैं?' ये जिनेन्द्र देव हैं । ये तुम्हारे वश में हैं ?' हे प्रिये ! ये प्रतापी मेरे वश में नहीं हैं ।' तो अब से अपने शौर्य बल की डींग मारना छोड़ दीजिये ।' कामदेव बोला- जब इन दिगम्बर प्रभु ने मोह राजा को जीत लिया है, फिर हम किंकर कौन होते हैं? हमने इन्हें नहीं जीता, परन्तु इन्होंने मुझे ही जीत लिया। जिसने शुद्ध स्वभाव का रस चख लिया उसे अन्य विषय-भोग आकर्षित नहीं कर सकते ।
'जैन गीता' में आचार्य श्री ने लिखा है कामाग्नि ऐसी विचित्र प्रकार की अग्नि है, जिसमें तीन लोक के प्राणी जल रहे हैं
कामाग्नि में जल रहा त्रैलोक्य सारा । दीखे जहाँ विषय की लपटें अपारा ।। वे धन्य हैं, यद्यपि पूर्ण युवा बने हैं । सत्शील में लस रहे, निज में रमे हैं ।।
जगत् के जितने भी प्राणी हैं, वे इस काम की अग्नि में जल रहे हैं, जहाँ चारों ओर विषय और कषाय की लपटें उठ रही हैं । पर वह जीव धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने युवावस्था मं ब्रह्मचर्य धारण कर शीलव्रत का पालन किया ।
जिस प्रकार जल से नवनीत की प्राप्ति नहीं हो सकती, उसी प्रकार विषय-भोगों के सेवन से कभी भी सुख-शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती । एक कवि ने लिखा है
शास्त्र पढ़े, मालायें फरीं, निशदिन रहा पुजारी । किन्तु रहा जैसा-का-तैसा, मन न हुआ अविकारी । ।
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