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त्यों लोहा ही बना रहा। जौहरी बोला-आप अपना लाहा दिखाना, कैसा है | लाहा देखा तो उस पर जंग लगी थी | उसने कहा-इस पर तो जंग लगी है | इसको साफ करके लाओ । जंग लगे हुये लोह को पारस पत्थर से स्पर्श करने से वह सोना नहीं बन सकता | लोहे की जंग साफ करके जब उसे पत्थर से स्पर्श किया, तो वह सोना बन गया। अब वह व्यक्ति बहुत पछताया। वह सार-के-सारे पत्थर समुद्र में फेक चुका था।
उसी प्रकार जब तक आत्मा पर विषय-कषायरूपी जंग लगी हुई है, तब तक ब्रह्मचर्य धर्म प्रकट नहीं हो सकता, आत्मा में रमण नहीं हो सकता, आत्मा में लीन नहीं हो सकते । ____ अतः यदि हम इस दुर्लभ मनुष्य-जन्म की सार्थकता चाहते हैं, तो इस विषय-कषाय रूपी जंग का निकालना होगा, तभी हम ब्रह्मचर्य व्रत के धारी बन सकते हैं।
विचार करो, जा उपयोग पापों में लगे, दुर्भाव में रह, क्या ऐसा मलिन उपयोग अपने ब्रह्मस्वरूप का अनुभव कर सकता है? कभी नहीं। अतः हमें समस्त पापों, विषय-भागों एवं कषायों को आत्म कल्याण के मार्ग में बाधक जानकर छोड़ देना चाहिये ।
हम किसी भी परपदार्थ में रागद्वेष न करें। मुनिराजों की यह विशेषता है कि वे संसार के समस्त पदार्थों को जानते-देखते हैं, पर उनसे राग-द्वेष नहीं करते । लेकिन हम उनसे एक काम अधिक करते हैं, आचार्य कहते हैं-“देखा जानो, बिगड़ो मत” जानना देखना हमारा स्वभाव है, पर हम जानते हैं, देखत हैं और बिगड़ जाते हैं | परन्तु मुनिराज बिगड़ते नही हैं अर्थात् राग-द्वष नहीं करत | जा ज्ञाता-दृष्टा स्वभाव में लीन हो गये हैं, वे मुनिराज ही ब्रह्मचर्य धर्म के धारक होते
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