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यदि मात्र ब्राह्य स ही हम ब्रह्मचर्य को समझें, तो पाँचों इन्द्रियों के विषयों का त्याग ही ब्रह्मचर्य कहलाता है | अकेले स्त्री मात्र का त्याग ब्रह्मचर्य नहीं है। वास्तव में इन्द्रिय-संयम ही ब्रह्मचर्य है। स्पर्शन इन्द्रिय की पूर्ति के लिये पंखा, कूलर, हीटर चाहिये, मुलायम-मुलायम गद्द चाहिये | रसना इन्द्रिय की पूर्ति के लिय अच्छा-अच्छा स्वादिष्ट भोजन चाहिये | घ्राण इन्द्रिय की पूर्ति के लिये सुगन्धित पदार्थ चाहिय | चक्षु इन्द्रिय की पूर्ति के लिये सुन्दर-सुन्दर दृश्य दखने को चाहिये । कर्ण इन्द्रिय की पूर्ति क लिये अच्छ-अच्छे गाने सुनना, इस प्रकार की जिसकी भावना है, उसने भले ही द्रव्य स्त्री का त्याग कर दिया हो, ब्रह्मचारी बन गया हो, पर वह वास्तव में ब्रह्मचारी नहीं है। जहाँ इन्द्रिय-विषयों की वासना व कषायों की शान्ति नहीं हुई, वहाँ ब्रह्मचर्य जन्म नहीं ले सकता।
जिसकी वासना और इच्छाओं का अभाव हो जाता है, उसके जीवन में ब्रह्मचर्य धर्म प्रगट होता है और वह जन्म-मृत्यु क चक्कर से दूर हा जाता है। उसे निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है।
एक बार की बात है। एक व्यक्ति समुद्र के किनारे घूम रहा था । वहाँ उसे पत्थरों का एक ढेर दिखाई दिया। वह वहीं पर बैठ गया। वहाँ से एक जौहरी निकला, बोला-ये तो पारस पत्थर हैं, जो कि लाहे को साना बना देते हैं। वह व्यक्ति परीक्षा के लिय घर से एक लोहे का टुकड़ा लाया और प्रत्येक पत्थर से स्पर्श कराया, परन्तु वह सोना नहीं बना। वह प्रत्येक पत्थर का लाहे से स्पर्श कर समुद्र में फेकता गया | अन्त में मात्र एक टुकड़ा रह गया। तब वही जौहरी वहाँ से फिर निकला। वह व्यक्ति जौहरी से बोला-आपने कहा था यह पारस-पत्थर है, इसके स्पर्श से लोहा साना बन जाता है, परन्तु इनमें से एक भी पत्थर पारस नहीं निकला, हमारा लोहा ज्यों-का
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