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मिनिट के वियोग होने पर ही, अपने प्राण तक त्याग देते हैं। हम बारह भावना में पड़ते हैं -
मैं एकाकी एकत्व लिये, एकत्व लिये सब ही आते |
तन धन को साथी समझा था, पर ये भी छोड़ चले जाते।। हम संसार में अकेले आते हैं और अकेले चले जाते हैं। हम सोचते हैं कि यह तन, धन हमारा साथ दगा, परन्तु ये भी हमें अकेले छोड़कर चले जात हैं अर्थात् इस संसार में कुछ भी हमारा नहीं है। यह संसार मायाजाल है। यहाँ के सारे संबंध स्वार्थ से जुड़े होते हैं इसलिये सब झूठे हैं।
एक सन्त एकत्व भावना पर प्रवचन कर रहे थे, उन्होंने अपने प्रवचन में हजारों धर्म पिपासुओं का समझाते हुये कहा कि संसार के सारे सम्बन्ध स्वार्थ पर टिके हैं, यथार्थ में कोई किसी का साथी नहीं है, सब सपनों के समान हैं, जैसे सपना सच नहीं होता, उसी प्रकार ये सम्बन्ध भी सच नहीं होते हैं। इस प्रकार के प्रवचन सुनकर एक व्यक्ति बोला-आपकी बात सच नहीं है, आप लोगों को भ्रमित कर रह हैं, आपक कोई नहीं होंगे इसलिये ऐसी बातें कर रह हैं, मरे तो परिवार वाले सभी हैं और मुझे बहुत चाहते हैं, मेरे बिना तो घर में कोई काम ही नहीं होता है।
संत ने कहा-हो सकता है तुम्हारे सब हों और बहुत चाहते भी हों परन्तु इसका प्रमाण क्या है? श्रावक बोला और आपकी बात का प्रमाण क्या है? संत बाले-मैं अपनी बात का प्रमाण ता दे दूंगा परन्तु तुम्हारा प्रमाण क्या है, पहले उसको कहो । श्रावक न कहा-मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास है | संत ने पूछा कि तुम्हारे घर में कौन-कौन है और क्या सभी तुम्हें चाहते हैं। श्रावक ने कहा-मेरे घर में मरे
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