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और इसलिये मालिक की नींद हराम हो गई। दूसरे दिन नौकर आया और उसकी लापरवाही से आपका टी.वी. टूट गया, नौकर ने इसके लिये भी माफी माँग ली। परन्तु ममत्व की महिमा देखिये कि आपने नौकर से कहा कि कोई बात नहीं हम विचार कर रहे थे तुमने हमारी बहुत सेवा की है और इनाम के बतौर यह टी. वी. आज ही हम तुम्हें देने वाले थे, लेकिन क्या करें, तुम्हारी किस्मत ही खराब है कि टी.वी. फूट गई । अब सेठ जी घर जाकर नुकसान होने के बाद भी आराम से सो रहे हैं, लेकिन नौकर का क्या हुआ? उसे नींद नहीं आ रही है, अपनी किस्मत पर रो रहा है कि आज यदि टी.वी. नहीं फूटती, तो वह अपने घर टी.वी. ले आता । इसलिये कहा है कि ममत्व के जो परिणाम होते हैं, वो दुःख देते हैं ।
राजवर्तिक में आचार्य लिखते हैं कि जलचर प्राणी दो प्रकार के होते हैं - एक मेंढक के समान और दूसरे मछली के समान । दोनों में मूर्च्छा कितनी है, इस बात को बताया है, कि मंढक को जल से बाहर निकलने के बाद भी कोई दुःख नहीं होता है परन्तु मछली को अगर एक मिनिट भी जल से बाहर निकाल दोगे तो वह तड़पने लगेगी। इसी प्रकार दो तरह के मनुष्य होते हैं। जिनको भेद विज्ञान होता है, वह परिग्रह की चार दीवारों में भी रह लेते हैं और परिग्रह उनको जकड़ नहीं पाता है, और परिग्रह छूट जाने पर भी दुःख नहीं होता कि हमारा कुछ छूट गया, क्योंकि संसार की कोई भी वस्तु हमारे साथ जाती ही नहीं है, जब तक हमारा पुण्य रहता है, तब तक ही हमार साथ हमारे पत्नी, बच्चे, धन, दौलत आदि साथ रहते हैं, और पुण्य समाप्त होते ही ये सब हमको छोड़कर चले जाते हैं। इसलिये जो आकिंचनता को प्राप्त हो गया है, वह इनके वियोग होने पर दुःख का अनुभव नहीं करता है और जो मछली के समान होते हैं, वह एक
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