________________
मानना तुम्हारा है, तो तुम सिद्धत्वता को प्राप्त कभी नहीं कर सकते हो । इसलिये "न किंचन इति आकिंचन्य", कुछ भी तुम्हारा नहीं है, परमाणु मात्र भी तुम्हारा नहीं है, ऐसा विचार जहाँ पर आता है, वहीं पर आकिंचन्य धर्म प्रारम्भ होता है ।
तीन प्रकार के गड्ढे होते हैं, एक तो पेट का गड्ढा होता है, दूसरा तृष्णा का गड्ढा होता है और तीसरा एक खाई होती है, जो लौकिक गड्ढा होता है । इस लौकिक गड्ढे को आप भर सकते हो, पेट के गड्ढे को आप भर सकते हो, लेकिन तृष्णा रूपी जो गड्ढा है, वो कभी भरा नहीं जा सकता । तृष्णा रूपी गड्ढे में सारे संसार की जायदाद आ जाय, फिर भी आपकी तृष्णा समाप्त नहीं होती है । आज आपके पास एक हजार रुपये हैं, तो कल आपको एक लाख रुपये की आकांक्षा बढ़ जाती है। जो संसार में बहुत पैसे वाले हैं, लेकिन कभी उन्होंने ऐसा विचार नहीं किया कि आज हमको पैसा कमाना बंद करना है। टाटा, बिड़ला जैसे धनवान व्यक्ति, जिनको खुद अपनी जायदाद के बारे में नहीं पता कि उनके पास कितनी जायदाद हैं, फिर भी उन्होंने अपना व्यापार बंद नहीं किया और लगातार पैसे कमाने के प्रयास में व्यस्त रहते हैं । यह तृष्णा का गड्ढ़ा कभी भर ही नहीं सकता ।
इस विश्व में एक 35-40 वर्ष का एक ऐसा युवक है, जिसके बराबर कोई पैसे वाला नहीं है, उसका नाम है बिलगिस्ट, वो भी पैसे कमाने में लीन है, वो भी पैसे कमा रहा है, वो भी इस प्रकार कभी नहीं सोच पाता कि इस संसार में यह पैसा कब तक कमाना है, कितना कमाना है । ये तृष्णा आपके लिये आकिंचन्य धर्म को प्रकट नहीं करने देती । ये तृष्णा बार-बार आपके लिये संसार की तरफ बढ़ाती है। इसलिये यह आकिंचन्य धर्म आपको बोध देता है कि तुम
578