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की जमीन पर तपस्या कर रहा हूँ, यह छोटी-सी कषाय, छोटा-सा विकल्प रह गया है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, यदि ये कषायें भी मन में रहती हैं, तो वो आत्मा सिद्धत्व को प्राप्त नहीं होती है | बाहुबली के पूरे शरीर पर अनेकों कीड़ों-मकोड़ों ने बिल बना लिये, लेकिन वो बिल और वे कीड़े-मकाड़े उनके लिय बाधक नहीं हो रहे हैं, लेकिन वह छोटी-सी कषाय बाधक हो रही है। जाआ-भरतेश्वर-जाओ, बाहुबली को सम्बोधित करा और तुम्हार सम्बोधित होने से ही वह केवलज्ञान को प्राप्त हो जायेंगे।
भरत पहुँच बाहुबली के पास | हे भ्राता, हे मुनीश्वर, हे प्राणियों के स्वामी, आप तो परमपिता बनने वाले हैं, आप को कौन-सा विकल्प है। हे मुनीश्वर, क्या आपको मेरे प्रति कोई कषाय रह गई है, यह वसुधा किसी की नहीं रही, आप यह मत सोचना कि मैं यहाँ का चक्रवर्ती हूँ | हजारों चक्रवर्ती यहाँ पर हो गये, परन्तु कोई भी चक्रवर्ती शाश्वत नहीं रह पाया। बाहबली ने सना और मन में विचार किया कि अरे मैं ये क्या सोच रहा था, इतना सोचना ही हुआ कि उसी समय वहाँ पर केवलज्ञान की ज्योति जल जाती है। गंध कुटी की रचना हो जाती है, घंटानाद बजना प्रारम्भ हा जाते हैं, देवागनायें आ जाती हैं, देव आते हैं, नाच-गाने प्रारम्भ हो जाते हैं। फाँस तनक सी तन में सालै, चाह लंगोटी की दुःख भालै |
थोड़ी-सी भी फाँस, थोड़ी-सी भी कषाय आप के मन में यदि बनी रहती है, परमाणु मात्र भी परिग्रह यदि आपके मन में रहता है, आपके विचारों में रहता है, थोड़ा-सा भी आप यदि साचते हो कि यह संसार तुम्हारा कुछ है, यही कुछ तुम्हारे लिये बाधक है, परमाणु के बराबर भी यदि तुम यह मानते हा कि तुम्हारा है, अगर ऐसा
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