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बाले-तुम ठीक कहते हो । ता फिर देवदत्त बोला-अच्छा तुम इनके बदल में दो रुपये ले लो | तब संत बाले-तुम्हारे रुपय स्वीकार करने पर तुम्हारा अंहकार बना रहगा और य टुकड़े तुम्हारे किसी काम में नहीं आयेंगे | मैं तो इन टुकड़ों को सी लूँगा और स्वयं प्रयोग कर लूँगा। इतना सुनते ही देवदत्त के अंहकार के टुकड़े-टुकड़े हो गये और वह संत के पैर पकड़कर क्षमा माँगने लगा।
क्षमा सबसे उत्तम धर्म है। जिसके अंदर क्षमा आ गई, उसमें मार्दव, आर्जव और शौचधर्म भी प्रकट हो जायेंगे | क्षमा तो आत्मा का स्वभाव है परन्तु क्रोधादि कषायों क कारण यह आत्मा अपने स्वभाव को भूलकर मलिन हो रही है। क्रोध करन स सदा अहित ही होता है | दरभंगा में दो भाई थे। दोनों ही इतिहास के विद्वान थ। एक दिन किसी बात पर दोनों में विवाद हो गया, दोनों में लड़ाई हो गयी। मुकदमा चला और दोनों ही जागीरदार से किसान की हालत में आ गय | प्राणियों का असली शत्रु यह क्रोध ही है। क्रोध व्यक्ति के अमृतमय जीवन में विष घोल देता है। क्रोध के कारण सैकड़ों परिवार टूटते देख जाते हैं। यह क्राध मनुष्यों में परस्पर प्रम का नाशकर नित्य ही शत्रुता को बढ़ाने वाला है। नित्य प्रति होन वाले झगड़ व कलह का कारण यह क्राध कषाय ही है।
एक व्यक्ति शाम को दुकान से घर आया। उसने पाँच हजार रुपय पत्नी को दिये | पत्नी भोजन बना रही थी, वह रुपयों को वहीं छोड़कर किसी काम से बाहर गई । इतने में वहाँ खेल रहे उसक 2 वर्ष के बेट ने रुपयों की गड्डी को उठाकर जलते चूल्हे में डाल दिया। अग्नि तेज जलने लगी, जिसे देखकर वह बेटा खुश हो रहा था। इतने में माँ आ गई | उसने जब यह सब नजारा देखा तो उसे समझने में देर न लगी। क्रोध ने उसे अंधा बना दिया और वह अपना
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