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नई लगती हैं | याद करें तो जान जायें कि हर भव में हमने इन्हें ग्रहण किया और हर भव में इन्होंने मेरा त्याग किया। हम एक-एक करके इन्हें ग्रहण करते, इनका पाषण करते और ये पुष्ट होकर एकदम मुझे आँखें दिखा दतीं। आचार्य दया करके समझाते हैं एसे कृतघ्नी को तू पुनः ग्रहण करने चला है, आश्चर्य है। अब तो आँखें खोल और इससे पहले कि ये तुझे त्यागे, तू इन्हें त्याग दे |
त्याग क आनन्द को असंयमी पुरुष नहीं समझ सकते। जिसे अभी पर-पदार्थों में ही रस आ रहा है वे उत्तम त्याग को धारण नहीं कर सकत । व भगवान के आनन्द को और स्वरूप के आनन्द को प्राप्त नहीं कर सकते।
एक काल्पनिक कहानी है। एक बार भगवान ने प्रसन्न होकर भक्त से पूछा - तुम क्या चाहते हो? भक्त ने उत्तर दिया कि मैं कुछ नहीं चाहता, बस यही चाहता हूँ कि दुखियों का दुःख दूर हो जाये | भगवान ने कहा तथास्तु, किन्तु यह ध्यान रहे कि जो सबसे अधिक दुःखी हो सर्वप्रथम उसको लेकर आना | भक्त ने स्वीकार कर लिया। भक्त बहुत प्रसन्न हुआ कि अब मैं दुनिया को सुखी कर दूंगा | सारी दुनिया दुःखी है। वह सर्व प्रथम सबसे अधिक दुःखी की तलाश करने लगा। एक-एक व्यक्ति से पूछता जाता कि तुम्हें क्या दुःख है, लोग उत्तर देत और तो सब ठीक है, बस एक कमी है, कोई पुत्र की कमी बताता, कोई धन की, मुझे पूर्ण कमी है, ऐसा किसी ने भी नहीं कहा। चलत-चलते उसने देखा, एक कुत्ता नाली में पड़ा हुआ है, तड़प रहा है, मरणोन्मुख है| वह जाकर उससे पूछता है, कि तुम्हें क्या हुआ? कुत्ता कहता है कि मैं बहुत दुःखी हूँ | भक्त सोचता है, बस पकड़ में आ गया पूर्ण दुःखी। उसने कुत्ते से
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