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युद्ध की तैयारी में लग गये | अपने ही मंत्री काष्ठांगार से युद्ध करते-करते राज सत्यंधर के जीवन का अंत समय जब निकट आ गया, तो वे विचार मग्न हो गये -
सर्व निराकृत्य विकल्पजालं, संसारकान्तार निपातहेतुम् । विविक्तामात्मांनम् वक्षमाणों, निलीयसे त्वं परमात्मतत्त्व ।। पहले राजा लोग बड़े सजग होते थे। पुत्र रत्न की प्राप्ति हाते ही घर द्वार छोड़कर तपस्या के लिये वन में जाकर दीक्षा धारण कर लेते थे | यदि आकस्मिक मृत्यु का अवसर आ जाता तो तत्काल सब छोड़ कर आत्मकल्याण के लिये संकल्पित हो जाते थे। यही सत्यंधर ने किया। वे रणांगन में ही सब कुछ त्यागकर दीक्षित हो गये तथा सद्गति को प्राप्त हुए। ___ आज तक त्याग के बिना किसी को भी मुक्ति नहीं मिली और मिलना सम्भव भी नहीं है। एक साधु महाराज थे | वे उपदेश दिया करते थे कि त्याग से तो संसार समुद्र पार कर लिया जाता है। एक बार वह साधु किसी दूसरे गाँव में जाने लगा तो रास्ते में नदी पड़ती थी। साधु जी का नदी के उस पार जाना था पर नाव वाले को देने के लिय 2 पैसे नहीं थे, सो शाम तक नदी पर बैठे रहे | शाम को उनक भक्त सेठ जी आये और समझ गये साधु जी के पास देने को पैसे नही हैं इसलिय बैठे हैं। सेठ जी ने नाव वाले को 4 पैसे दिये और साधु जी के साथ नाव में बैठकर नदी पार कर गये | उस पार पहुँच जाने पर सेठ जी कहते हैं, आप तो कहा करते हो कि त्याग से संसार समुद्र भी पार कर लिया जाता है, पर आप तो यह छोटी-सी नदी भी पार नहीं कर पाये | साधु जी बोले-भैया जब आपने 4 पैसे का त्याग किया तभी ता पार हुये और मैंने भी पूर्व में
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