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से अपना पेट पाल पाता हो वह यदि दो रोटियों में से आधी रोटी भी किसी भूखे को देता है तो उसका दान बड़ा दान है, उसकी बड़ी महिमा है ।
एक बार कलकत्ता में कांग्रेस का सालाना जलसा हुआ जिसके अंत में गांधीजी ने कांग्रेस की सहायता करने के लिये आम जनता के सम्मुख अपील रखी। जिसमें कई धनवान लोगों ने लाखों रुपये दान दिये । इतने में एक खोचा मुटिया आया और बोला कि महात्मा जी! मैं भी ये आठ आने जो कि दिन भर मुटिया मजदूरी करने से मुझे प्राप्त हुये हैं देश सेवार्थ कांग्रेस के लिये अर्पण करता हूँ। क्या करूँ अधिक देने में असमर्थ हूँ, रोज मजदूरी करता हूँ और पेट पालता हूँ | मगर मैंने यह सोचकर कि देश सेवा के कार्य में मुझे भी शामिल होना चाहिये, यह आज की कमाई कांग्रेस को भेंट कर रहा हूँ। मैं आज उपवास से रह लूँगा और क्या कर सकता हूँ ।
इस पर गाँधी जी बहुत प्रसन्न हुये और उसकी प्रंशसा करते हुये बोले- जब हमारे देश में ऐसे त्यागी पुरुष विद्यमान हैं, तो हमारे देश को स्वतंत्र होने में अब देर नहीं समझना चाहिये ।
हमें सदा निष्काम व निरीह भाव से केवल स्वव पर के कल्याण की भावना से दान देना चाहिये | दान करते समय ऐसी भावना रखना कि इसके बदले मुझे कुछ मिलेगा तो वह राजस दान कहलायेगा । कीर्ति, यश, मान बढ़ाई के लिये दिया गया दान फलदायी नहीं होता । मगर हमें नाम के बिना दान देने की इच्छा ही नहीं होती पर ध्यान रखना यह नाम व मान किसी का न रहा है, न रहेगा ।
भरत चक्रवर्ती ने वृषभाचल पर्वत पर अपना नाम लिखने मंत्री को भेजा। पर जब मंत्री वापिस आया और बोला- महाराज ! वृषभाचल
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