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से रहें, सभी पर क्षमाभाव रखें, इससे तत्काल भी शान्ति मिलती है और भविष्य भी बहुत अच्छा रहेगा। क्रोध के फल में तत्काल भी अशान्ति है और भविष्य भी बहुत बुरा निकलता है। जो विपरीत परिस्थितियों में भी क्षमाभाव रखते हैं, वे ही क्षमावान् कहलाते हैं। क्षमागुण की वास्तविक पहचान तो विपरीत परिस्थितियों में ही होती
एक बार गणेशप्रसाद जी वर्णी माता चिरोंजाबाई से बोले-माँ! अब तो मेरा क्रोध बहुत शान्त हो गया है, मेरे अन्दर क्षमागुण आ गया है। माता जी बोलीं-बेटा! यह तो समय बतायेगा। एक दिन वर्णी जी को खीर खाने की इच्छा हुई, इसलिये उन्होंने खीर बनाने के लिये सुबह दूध और बाजार स मेवा आदि सभी सामान लाकर रख दिया और बोले-माँ! आज खीर बनाना। तब चिरोंजाबाई ने विचार किया कि आज परीक्षा का समय आ गया है। अतः उन्होंने खीर के साथ-साथ खाली चावल भी पानी में उबाल कर रख लिय | वर्णी जी को पहल खाली उबले हुय चावल परोस दिये और कहा-बेटा! खीर ठंडी करके खाना । जैसे ही वर्णी जी ने चावल उठाकर मुख में रखे, व क्रोध से लाल-पीले हो गये और थाली फेक दी। तब माता जी बोलीं-बेटा! तुम तो कहते थे कि मैंने क्रोध पर विजय प्राप्त कर ली है, तो फिर यह क्या है? अनुकूल परिस्थितियों में ता सभी क्षमावान् रहते हैं, परन्तु प्रतिकूल परिस्थितियों में क्षमावान् बनो, तभी सही है | और इतना कहकर जो असली खीर थी, वह परोस दी।
क्रोध को जीतना वीरों का काम है। सामर्थ्य के होने पर भी मूर्खजनों द्वारा कथित दुर्वचन आदि को समता भाव से सहन कर लेना 'क्षमा’ है। आशीविष, दृष्टिविष आदि ऋद्धियों के होन पर भी, महात्माओं क प्राणों का नाश करनेवाले दुर्जनों द्वारा घार उपसर्ग
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