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प्राप्त करने का मूल मंत्र-तंत्र है |
श्री सुघासागर जी महाराज ने लिखा है कि यदि सम्यग्दृष्टि को इतना भर पता चल जाता है कि मुझे केवलज्ञान होगा, तो उसके आनन्द का पार नहीं रहता | अभी हुआ नहीं, लेकिन रिजर्वेशन ता हो गया ।
एक महाराज पेड़ के नीचे बैठ थ। दा श्रावक वहाँ से निकल रहे थे। महाराज ध्यान में बैठे थे। श्रावक समवशरण में जा रहे थे। वे समवशरण में जाते ही भगवान से पूछते हैं, भगवन् ! एक जिज्ञासा है, हमारे नगर के राजा ने दीक्षा ले ली और वृक्ष के नीच ध्यान में बैठे हैं। उनक संसार में कितने भव शेष है? भगवान ने कहा जिस पेड़ के नीच वे बैठे हैं उसमें जितने पत्ते हैं उतने उनके भव शेष हैं। भगवन् ! यह क्या मामला है? वह तो इमली के पेड़ के नीचे बैठे हैं | उसमें तो अनगिनत पत्ते हैं। हाँ! अभी उनके इतने भव शेष हैं। भगवान! हम दोनों के भव कितने हैं? बोले सात-आठ भव | __ वे दोनों श्रावक सम्यग्दर्शन से रहित थे अतः व श्रावक मुनिराज के पास गये और बोले-अरे! आपको तो अभी संसार में इतना भटकना है जितने इस पेड़ में पत्ते हैं और हम लागों के तो मात्र सात, आठ भव शेष हैं। महाराज हँसने लग गये | महाराज प्रसन्न हो गये। दोनों श्रावक सोचते हैं कि लगता है यह अपना भव सुनकर पागल हा गये हैं | वे बोले-महाराज! आप खुश हो रहे हैं? आपको तो दुःख होना चाहिये था? महाराज कहते हैं-अरे भैया! इतना प्रमाण पत्र तो मिल गया कि भले ही इमली के पड़ के पत्तों बराबर सही, लेकिन यह तो पक्का हो गया कि एक दिन मुझे केवलज्ञान होगा। मैं धन्य हो गया। व महाराज कुछ दिन में मरण को प्राप्त हो
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