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बहुत अच्छा है। मंत्री को कुँए मे ढकेल दिया और आप आगे बढ़ गया। अब क्या हुआ? एक देश में राजा नरमेध-यज्ञ कर रहा था। उसमें बलि देने के लिये सुंदर निर्दोष मनुष्य चाहिय था | सो राजा ने चार पंडों को अच्छा मनुष्य खोजने के लिये छोड़ा | उन चारों पंडों को वही राजा जंगल में मिल गया, राजा सुंदर था ही। उसे चारों पंडे पकड़ ले गये और पकड़कर उन्होंने यज्ञ के पास एक खूटे में बाँध दिया । बलि देन की तैयारी हो रही थी कि एक पंडे न देखा कि अरे! इसके एक हाथ में तो 6 अंगुली हैं। उस यज्ञ में निर्दोष शरीर वाला मनुष्य चाहिये था। राजा की 6 अंगुली देखकर वहाँ से डंडे मारकर उस राजा को भगा दिया | अब राजा रास्ते में सोचता है कि मंत्री ठीक कहता था कि मेरी 6 अंगुली हैं तो बड़ा अच्छा है, उसकी बात ठीक हुई। राजा प्रसन्न होकर उस कुँए के पास आया और मंत्री को उस कुँए से निकाल लिया । मंत्री से कहा कि तुम ठीक कहते थे कि जो होता है सो भले के लिय ही होता है। मंत्री ने पूछा क्या हुआ? राजा ने सारा किस्सा सुनाया, और कहा कि हमार 6 अंगुली थीं, इसलिये बच गये | अच्छा, मंत्री! यह बताओ कि तुम्हें जो मैंने कँए में पटक दिया सो कैसा हआ? मंत्री बोला यह भी अच्छा हआ। राजा बोले-कैसे? मंत्री ने कहा-महाराज! यदि मैं साथ में होता, तो मैं भी पकड़ा जाता | आप तो बच जाते 6 अंगुली की वजह से और मैं ही फँसता । सो यह भी भले के लिये हुआ। सो इस जीवन में दुःखी होने का कोई काम नहीं है, चाहे धन आवे, चाहे न आवे, इज्जत हो, चाह न हो, परिवार रहे, चाह न रह, पर सदा प्रसन्नता से रहना चाहिये | ये सब पदार्थ हैं, परिणमते रहते हैं। यही इनका स्वभाव है, जो होता है सब भले के लिये हाता है। तप के लिये पर वस्तुओं की चाह का संबंध नहीं होना चाहिये ।
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