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जब वे कुछ नहीं बोले तो उसको और क्रोध आया और उसने वहीं से गीली मिट्टी उठाकर उनक सिर पर अंगीठी बनाकर उसमें आग लगा दी। पर व ता ध्यान में ऐसे लीन हुये कि समस्त कर्मों को नष्ट कर अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया।
जो विषय कषायों का त्याग करके इन बारह प्रकार क तपों को करते हैं, उन्हीं का जीवन सार्थक है | तप की महिमा अचिन्त्य है, वर्णनातीत है | तपश्चरण का कितना चमत्कार है, इसका एक जीता जागता उदाहरण है।
एक रूपलक्ष्मी नाम की महिला थी | वह पंचमी के 5-5 दिन के उपवास किया करती थी। वह बड़ी भोली-भाली थी। उसने अपने जीवन में कभी राना नहीं सुना था। एक बार क्या घटना घटी कि, वह अपन घर से कहीं बाहर जा रही थी। उसे रास्ते में एक रोती हई महिला दिख गई। उसका बटा मर गया था। जब रूपलक्ष्मी ने उसका राना सुना तो समझा, कि यह स्त्री कोई गीत गा रही है। उसन कभी रोना सुना ही न था, इसलिये उसे गीत समझ लिया। वह उस रोने वाली स्त्री से कह उठी कि, बहिन तुम ता बहुत अच्छा गा रही हा । उस महिला को बुरा लग गया, देखो हमारा तो पुत्र मर गया, जिससे हम रो रहे हैं और यह कह रही है कि तुम बड़ा अच्छा गीत गा रही हो। उसने यह प्रतिज्ञा की कि मैं भी इसको इसी तरह रुलाकर रहूँगी।
उसने एक सकोरे में जहरीला सर्प रखकर उसे बन्द करके रूपलक्ष्मी को दिया और कहा कि इस सकोरे के अन्दर बड़ी कीमती रत्नों की माला है। उसे तू अपने बेटे को पहना देना | उसने घर जाकर अपने बेट से कहा कि बेटा तुम नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर
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