________________
है, उसी प्रकार जिनवाणी माँ हमें अनादि काल के अज्ञान रूपी अन्धकार से निकालकर मोक्षरूपी प्रकाश भवन में बैठा देती है । स्वाध्याय करने से ही हमें धर्म का स्वरूप व उसकी महिमा समझ में आती है।
स्वाध्याय करने से ज्ञान-वैराग्य दोनों बढ़ते हैं और आचरण में निर्मलता आती है। सभी को प्रतिदिन स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये । 5. व्युत्सर्ग तप व्युत्सर्ग का अर्थ है त्याग करना बाह्य में इन धन धान्यादिक का त्याग करना और अंतरंग में शरीर से ममत्व का त्याग करना ।
—
पाँचों पांडवों का शरीर बाहर से जलता रहा पर उन्होंने शरीर की ओर ध्यान भी नहीं दिया । सुकुमाल मुनि के शरीर को स्यालनी तीन दिन तक भक्षण करती रही पर वे शरीर का ममत्व छोड़कर ध्यान में खड़े रहे ।
जीवों को सबसे अधिक ममत्व अपने शरीर से होता है ।
एक बंदरिया थी । बंदरिया को सबसे अधिक प्यार अपने बच्चे से होता है । वह बंदरिया अपने बच्चे को पेट से चिपकाये पेड़ पर बैठी थी कि अचानक बाढ़ आ गई | बंदरिया ऊपर चढ़ गई पानी ऊपर बढ़ता गया। बंदरिया वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर पहुँच गई, पर तब भी अपना बचाव न कर सकी तब अन्त में बच्चे के ऊपर पैर रखकर खड़ी हो गई । किसलिये ? अपने शरीर की रक्षा के लिये । इस जीव को सबसे प्यारा शरीर है । शरीर बनाये रखने के लिये यह स्त्री, पुत्रादि सभी कुछ छोड़ सकता है। जितने पाप किये जाते हैं, सब शरीर के लिये ।
पर ध्यान रखना यह शरीर तो दगा - बाज मित्र है और दगाबाज
439