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जायेंगे |
इस तप से रागादि भावों पर विजय प्राप्त होती है, कर्मों का क्षय होता है। महाराजों के कठिन नियम कई-कई दिनों तक नहीं मिलते । शान्तिसागर महाराज का नियम बैल के सींग में गुड़ लगा हो तभी आहार ग्रहण करेंगे, कई दिन बाद मिला था ।
हम लोग भी जब भोजन करने बैठें तो यह विचार कर सकते हैं कि अमुक वस्तु मिलेगी तो भोजन करेंगे या एक बार का परोसा हुआ भोजन ही करेंगे, मौन लेकर भोजन करेंगे, किसी वस्तु को इशारे से नहीं माँगेंगे, थाली में जैसा भोजन आ जायेगा वैसा ही कर लेंगे । इस तप से भोजन सम्बन्धी इच्छाओं का निरोध होता है ।
4. रस परित्याग छह रसों में से एक, दो अथवा सभी का परित्याग करना रस- परित्याग तप है ।
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पूर्ण रूप से तो रस - परित्याग तप मुनिराज ही करते हैं। थाली में अच्छी-से-अच्छी चीज देखकर जिसमें अधिक राग हो, उसे कहेंगे हटा लो। घी, दूध आदि समस्त रसों में से कुछ-न-कुछ रसों को छोड़कर ही भोजन करते हैं और अपनी रसना इन्द्रिय पर विजय प्राप्त करते हैं ।
आज भी बहुत से ऐसे गृहस्थ मिलते हैं जिनके मन में आया कि आज अमुक चीज खानी है तो तुरन्त उसका त्याग कर देते हैं । यदि हम भी अपनी रसना इन्द्रिय को वश में करना चाहते हैं, तो हमें भी ऐसा करना चाहिये ।
5. विविक्त शय्यासन प्रमाद रहित होकर एकान्त स्थान में सोना, बैठना, रहना विविक्त शय्यासन तप है। क्योंकि मनुष्यों से संबंध रहेगा तो वहाँ वाक् व्यवहार से स्नेह बढ़ेगा। स्नेह का बन्धन
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